सोमवार, 3 जून को शनि जयंती है। शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं और ग्रहों के न्यायाधीश हैं। शनि जंयती पर और हर शनिवार शनि को तेल चढ़ाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस पंरपरा का पालन करते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…

शनि को तेल चढ़ाने से जुड़ी वैज्ञानिक मान्यता
पं. शर्मा के अनुसार हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है यानी सभी अंगों के कारक ग्रह हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह हैं। अगर कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में है तो इन अंगों से संबंधित परेशानियां व्यक्ति को झेलना पड़ती हैं। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिए हर शनिवार तेल मालिश की जानी चाहिए। शनि को तेल अर्पित करने का अर्थ यह है कि हम शनि से संबंधित शरीर के अंगों पर भी तेल लगाएं, ताकि इन अंगों को स्वास्थ्य लाभ मिले और ये बीमारियों से बच सके। मालिश करने के लिए सरसो के तेल का उपयोग करना श्रेष्ठ रहता है।

शनि पर तेल चढ़ाने से जुड़ी धार्मिक मान्यता
प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में शनि को अपने बल पर घमंड हो गया था। उस काल में हनुमानजी के साहस और बल की कीर्ति फैल रही थी। जब शनि को ये बात मालूम हुई तो वे हनुमानजी से युद्ध करने निकल पड़े। हनुमानजी श्रीराम की भक्ति में लीन थे, वे ध्यान कर रहे थे। तभी शनिदेव ने हनुमानजी को युद्ध के ललकारा।
हनुमानजी शनिदेव को समझाया कि वे अभी ध्यान कर रहे हैं और युद्ध करना नहीं चाहते हैं। शनिदेव नहीं माने और युद्ध के लिए ललकारने लगे। इसके बाद हनुमानजी ने शनि को बुरी तरह परास्त कर दिया। हनुमानजी के प्रहारों से शनिदेव के पूरे शरीर में दर्द होने लगा। तब हनुमानजी ने शनि को शरीर पर लगाने के लिए तेल दिया। तेल लगाते ही शनिदेव का दर्द दूर हो गया। तभी से शनिदेव को तेल अर्पित करने की परंपरा प्रारंभ हुई।

Input : Dainik Bhaskar

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