मुजफ्फरपुर संसदीय क्षेत्र में इस बार दो मल्लाहों की लड़ाई में किसकी नैया पार लगेगी? इस सवाल का जवाब तो 23 मई को काउंटिग के नतीजे आने के बाद मिलेगा।लेकिन राजनीतिक रुझानों की नब्ज पहचानने वालों का कहना है कि एनडीए या महागठबंधन के उम्मीदवारों की जय या पराजय मल्लाह वोटर ही तय करेंगे। इस संसदीय क्षेत्र में करीब तीन लाख मल्लाह वोटर हैं जो किसी जाति विशेष के वोटरों की सबसे बड़ी तादाद है।

पिछले चुनाव में एनडीए से बीजेपी के उम्मीदवार अजय निषाद ने करीब 2.50 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। अजय को सबसे अधिक 94789 वोट मुजफ्फरपुर शहरी विधानसभा क्षेत्र में मिले थे। उनके मुकाबले में खड़े कांग्रेस के प्रत्याशी अखिलेश सिंह शहरी क्षेत्र में लगभग 56 हजार वोटों के अंतर से पिछड़ गये थे। उन्हें मात्र 38038 वोट मिले थे। अजय की जीत के अंतर को शहर में मिले वोटों ने बड़ा कर दिया था।

लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं। अजय का मुकाबला अपनी ही जाति के उम्मीदवार डॉ राजभूषण चौधरी निषाद से है। पेशे से चिकित्सक एमबीबीएस डिग्रीधारी राजभूषण मल्लाहों की पार्टी के तौर पर चर्चित वीआइपी यानी विकासशील इंसान पार्टी के प्रत्याशी हैं। वीआइपी के अध्यक्ष सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी ने जब राजभूषण को उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया था तो, राजनीतिक पंडितों ने तंज कसा था कि अजय निषाद को ‘वाक ओवर’ मिल गया है। यानी अजय बिना लड़े ही दुबारे संसद पहुंच जायेंगे।

मुकेश पर टिकट बेचने तक के आरोप लगाये गये थे।अब जब दो दिन बाद वोटिंग होनी है तो कमजोर समझे जा रहे डॉ राजभूषण चौधरी निषाद को अजय पर भारी बताया जा रहा है। चुनाव पर रिसर्च कर रहे अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर सार्थक बागची ने Beforeprint.in से बातचीत में कहा, ‘ मैंने चार दिनों तक वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को अलग-अलग चुनावी सभाओं में देखा और सुना है।गरीब मल्लाहों की बस्ती में जाकर उनसे बात की है।मल्लाहों में मुकेश सहनी और उनकी पार्टी को लेकर जबरदस्त आकर्षण है। अगर यह वोटों में तब्दील हो गया जो होता हुआ दिख भी रहा है तो डॉ राजभूषण की जीत तय मानिए!

शुक्रवार 3 अप्रैल को अहमदाबाद लौटने से पहले हुई बातचीत में सार्थक ने कहा, मल्लाहों में वीआइपी को लेकर जो उत्साह दिख रहा है, उसकी वजह भी उनके बीच रह कर पता चला । मल्लाहों का पढ़ा-लिखा और युवा तबका कह रहा है कि अब हम टिकट मांगने वाले नहीं बल्कि टिकट बांटने वाले बन गये हैं।पहली बार हमारी पार्टी चुनाव लड़ रही है। लालू यादव ने मल्लाहों का राजनीतिक सम्मान बढाया है।

यह सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की बदौलत संभव हुआ है। हम अगर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जिताते हैं तो आगामी विधानसभा चुनाव में कम-से-कम दस-बारह विधानसभा सीटों पर हमारी दावेदारी पक्की हो जायेगी। राजनीतिक-सामाजिक चिंतक अनिल प्रकाश ने Beforeprint.in से बातचीत में कहा, गरीब मल्लाह भी वीआइपी और मुकेश सहनी के कारण अपने को राजनीतिक तौर पर सशक्त मान रहा है।उसे लग रहा है कि मौजूदा सांसद अजय निषाद की पहचान बीजेपी के एक एमपी से अधिक नहीं है।

जबकि मुकेश सहनी हमारी जाति के राजनीतिक प्रतिनिधि बन कर उभरे हैं। वे जितना मजबूत होंगे, मल्लाहों की राजनीतिक ताकत में उतना ही इजाफा होगा। यह काम किसी भी पार्टी के टिकट पर एमएलए या एमपी बन कर संभव नहीं हो पाता! केंद्र सरकार में मंत्री रहे स्वर्गीय कैप्टन जयनारायण निषाद के पुत्र अजय निषाद को पिछले चुनाव में पिता की राजनीतिक विरासत मिली। वे पहले ही चुनाव में विजयी रहे। तब मोदी लहर थी। उसबार मल्लाह और कुशवाहा बीजेपी के साथ थे।

इस बार कुशवाहों की पार्टी रालोसपा महगठबंधन के साथ है। मुसहरों की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी महगठबंधन में हैं। अनिल प्रकाश कहते हैं, मल्लाह, यादव, कुशवाहा और मुसलमान का वोट महगठबंधन के पक्ष में एकजुट दिख रहा है।इस क्षेत्र में पासी जाति की आबादी करीब डेढ लाख है जो सरकार से नाराज बतायी जाती है। सरकार ने ताड़ी से ‘नीरा’ बनाने की जो योजना शुरू की थी, वह फेल गयी। उल्टे शराबबंदी की आड़ में पुलिस पासी समाज को लगातार तंग तबाह करती रहती है।

इस जाति का वोट भी महगठबंधन को मिलने की उम्मीद है। पासवान यानी दुसाधों में भी रामविलास पासवान से नाराजगी और निराशा है। पासवानों का बड़ा हिस्सा महगठबंधन की ओर जाता दिख रहा है। एनडीए के भीतर आपसी खींचतान भी अजय की राह में रोड़ा बनता दिख रहा है। कुढनी विधानसभा क्षेत्र में 3 मई को मुख्यमंत्री की सभा के दौरान स्थानीय विधायक केदार गुप्ता और पूर्व मंत्री मनोज कुशवाहा के समर्थकों की भिड़ंत हो गयी। यह घटना बीजेपी और जेडीयू के बीच जारी ‘मौन जंग’ की खुली अभिव्यक्ति मानी जा रही है।

इसे बीजेपी से कुशवाहों की नाराजगी के नतीजे के तौर पर भी देखा जा रहा है। एनडीए के वोटों में जबरदस्त बिखराव दिख रहा है, यह बात खुद जदयू और बीजेपी के नेता भी मान रहे हैं। जदयू के एक पूर्व एमएलसी ने कहा, अपने वोटों को संगठित करने के लिए खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुजफ्फरपुर और वैशाली संसदीय क्षेत्र में लगातार छोटी-छोटी चुनावी सभाएं करनी पड़ रही है। पूर्व मंत्री और अब बीजेपी के एक नेता ने कहा, मल्लाहों, कुशवाहों के वोटों को समेटे बिना एनडीए उम्मीदवार की जीत आसान नहीं होगी!

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