आमतौर  पर हर वर्ष 18 मई तक अपनी शाही लीची परिपक्व हाे जाती थी। इस वर्ष लगातार 13 दिनों से जारी झुलसाने वाली गर्मी के कारण यह लाल हाेने के बदले जलने लगी है। पाॅलीथिन अदि  लगाकर इसे बचाने का लगातार प्रयास करने के बाद भी जब किसानाें काे सफलता नहीं मिली ताे वे परिपक्व हुए बगैर ही इसे तोड़ कर हटाने में जुट गए हैं। उनका कहना है कि अगर अब बारिश हुई ताे भीतर से गुदा के बढ़ने तथा ऊपर के छिलके के जल जाने से सभी लीची फट कर बर्बाद हा़े जाएगी।

जिले में इस वर्ष 18 मई तक एक बूंद भी बारिश नहीं हुई। दूसरी तरफ 5 मई से लगातार अधिकतम तापमान 40 डिग्री के आसपास  रहने के साथ ही नमीरहित झुलसाने वाली हवा चलती रही है। इस कारण आमतौर  पर जाे शाही लीची 18 से 22 ग्राम तक की हाेती रही है वह इस बार 12 से 14 ग्राम पर ही लाल हाेकर झुलस गई है। काली हाे गई है। स्थानीय बाजार में ज्यादा मांग नहीं हाेने के कारण किसान इसे इसी अवस्था में ताेड़ कर बाहर के बाजारों में भेजने लगे हैं। शनिवार काे भी जिले के बागाें में काफी संख्या में लीची की ताेड़ाई हुई।

40% लीची हाे चुकी बर्बाद बागों की सिंचाई नहीं कराए जाने का भी पड़ा है असर

अब तक जिले की 40 फीसदी से अधिक लीची झुलस कर बर्बाद हा़े चुकी है। भू जलस्तर के अत्यधिक नीचे चले जाने के कारण किसान जहां चाह कर भी बगीचे की सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं, वहीं केवल जड़ में पानी देने के बाद भी फलाें काे अधिक लाभ नहीं हा़े रहा है। सिंचाई नहीं हाेने का भी इस बार लीची के फल पर काफी कुप्रभाव पड़ा है। इस कारण अधिकारियों की टीम द्वारा सर्वेक्षण के बाद भी दिल्ली व पटना के माननीय काे भेजने के लिए लीची के बागों का चयन नहीं किया गया है।

2009, 11, 13 और  17 में मई माह में हुई थी सर्वाधिक बारिश

इस वर्ष 18 मई तक जिले में एक मिलीमीटर भी बारिश नहीं हुई है। अब तक मई में लगातार बारिश हाेती रही है। एक रिकाॅर्ड के अनुसार 2009 में मई माह में सर्वाधिक 194.8 मिमी, 2011 में 151.1 मिमी, 2013 में 148.9 तथा 2017 में 126 मिली मीटर बारिश हुई। जबकि, 2016 में 92.9 मिमी तथा पिछले वर्ष 2018 में 21.4 मिमी बारिश हुई थी। लेकिन, इस वर्ष एक बूंद भी पानी नहीं टपकने से लीची बुरी तरह जल रही है।

किसानों को बचाव का नहीं सूझ रहा उपाय

शाही लीची उत्पादक किसान मौसम की मार से काफी परेशान हैं। किसान भूषण भोलानाथ झा ने कहा कि इस वर्ष शाही लीची में खूब दाने आए। लेकिन, लगातार गर्मी से पाैधाें काे पोषक तत्व नहीं मिला। इससे फलाें का विकास नहीं हाे रहा है। किसान भूषण सतीश द्विवेदी ने कहा कि पिछले वर्ष 3-4 दिनों पर बारिश हाेने से हवा में नमी अधिक रही जिससे लीची में कीड़े लग गए। लेकिन, इस वर्ष पानी व नमी वाली हवा के अभाव में लीची का विकास ही नहीं हुआ है। फल लाल हाेकर अब जल रहे हैं। किसानश्री मुरलीधर शर्मा ने बताया कि पिछले वर्ष तक एक किलाे लीची में 35 तक फल ही चढ़ते थे। लेकिन, इस वर्ष एक किलाे में अभी 55 से अधिक फल चढ़ रहे हैं। इसके साथ ही जूस भी सामान्य से 50 फीसदी कम निकल रहा है। इतना ही नहीं जली हुई लीची के खरीदार नहीं मिल रहा है। अागे बारिश हाेने पर फट जाने के डर से किसान इसे तोड़ कर औने -पाैने दाम पर बेच किसी तरह पूंजी निकालने में जुट गए हैं। मौसम की मार से जिले के लीची उत्पादक किसानों काे कराेड़ाें रुपए का नुकसान हुआ है।

Input : Dainik Bhaskar

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