लोकसभा चुनाव के नतीजों के पहले रुझान आने में अब महज कुछ घंटे शेष है, इससे पहले बिहार के बेगूसराय से सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार ने अपने फेसबुक पर चुनाव परिणाम को लेकर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट किया है. उन्होंने चुनाव परिणाम आने के बाद समाज की स्थिति को लेकर लोगों को आगाह करते हुए लिखा है कि कल चुनाव में चाहे कोई जीते, हमें इसका ध्यान रखना होगा कि आने वाले समय में समाज में नफ़रत की हर हाल में हार हो. पिछले पाँच सालों में मतभेद को जिस तरह ‘मन का भेद’ बनाया गया है, उसने न केवल लोकतंत्र को कमज़ोर किया है बल्कि समाज को नफ़रत की आग में झोंकने का काम भी किया है.

सीपीआई नेता कन्हैया कुमार ने अपने पोस्ट में आगे लिखा है कि नेताओं के चक्कर में आपस में लड़ने वालों को ठंडे दिमाग़ से सोचने की ज़रूरत है कि ऐसा करने से किनका फ़ायदा होता है और किनका नुकसान. असहमति को अपराध या अपमान मानने की मानसिकता न केवल लोकतंत्र को कमज़ोर बनाती है, बल्कि रिश्तों में भी ज़हर घोलती है. कन्हैया ने आगे लिखा कि लोकतांत्रिक होने का मतलब है असहमति को सम्मान देना और यह बात चुनाव या राजनीति से आगे जाती है.

बेगूसराय सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया कुमार ने लिखा कि देश का मतलब क्या है? जो देश में रहते हैं, वही देश बनाते हैं. उनके हित ही देश के हित हैं. अगर ग़रीब किसान, मज़दूर, विद्यार्थी, दलित, आदिवासी, मुसलमान, महिला आदि को नुकसान पहुँचाने वाली नीतियाँ बनती हैं तो इसका नुकसान पूरे देश को होता है. उन्होंने आगे कहा कि इन नीतियों का विरोध करना देशप्रेम है न कि पीएम, सीएम या सांसद के विरोध को देश का विरोध मानकर सड़कों पर हिंसा करना. जिन्होंने देशप्रेम को नेताप्रेम बना दिया है, उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है. वे अपने फ़ायदे के लिए आपके रिश्तों में भी ज़हर घोल रहे हैं.

कन्हैया ने अपने पोस्ट में लिखा कि जिस दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार से राजनीतिक बहस के कारण आपकी बातचीत बंद हो गई है, उसे आज फ़ोन करें, उसके परिवार का हाल-चाल पूछें और बताएँ कि उनसे आपका रिश्ता इतना कमज़ोर नहीं कि वह ऐसी बातों से टूट जाएगा. उन्होंने कहा कि असहमतियों का सम्मान करना ही लोकतंत्र की ख़ूबसूरती है. अगर ‘हम भारत के लोग’ किसी भी तरह की नफ़रत को अपने दिल से मिटा देंगे, तो समाज और राजनीति में भी नफ़रतवादी ताकतें अपने आप हारने लगेंगी.

Input : Live Cities

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