आज पूरा देश ध्यान चंद के जन्म दिवस को खेल दिवस के रूप में मना रहा है. लेकिन विडंबना देखिये कि अपने दौर के दिग्गज हॉकी खिलाडी, तीन बार के ओलम्पिक विजेता और अपने खेल प्रतिभा के दम पर राष्ट्रीय खेल हॉकी को विश्व पटल पर जगह दिलाने वाले मेजर ध्यान चंद को अब तक भारत रत्न नसीब नहीं हो सका है. आज जब इस मुद्दे पर बोलते हुए मेजर ध्यान चंद के बेटे अशोक कुमार का दर्द फूटा तो उन्होंने कह ही दिया कि अवार्ड में राजनीतिक दखल ने उनके पिता को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-भारत रत्न से महरूम रखा है.

Major dhyanchand and his son ashok dhyanchand

रविवार को मेजर ध्यानचंद के बेटे और भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रह चुके अशोक ने को खेल दिवस के मौके पर कहा, “पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दादा (ध्यानचंद) को भारत रत्न देने की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए थे और तब के खेल मंत्री को इस बारे में बता दिया था. लेकिन बाद में इस फैसले को खारिज कर दिया गया. ऐसा करके सरकार ने न सिर्फ हमें अपमानित किया है बल्कि राष्ट्र के एक बेहतरीन खिलाड़ी का भी अपमान किया.”

ओलिंपिक पदक विजेता अशोक कहते है, “अवार्ड मांगे नहीं जाते. अवार्ड की चाह भी नहीं होती. अवार्ड की भीख नहीं मांगी जाती. जो हकदार हैं, सरकार उन्हें अवार्ड देती है.” उन्होंने आगे कहा “अब यह सरकार पर है कि इस पर फैसले और देखे कि ध्यान चंद को भारत रत्न मिलना चाहिए या नहीं.”

देश को ध्यानचंद को नहीं भूलने की हिदायत देते हुए उनके बेटे और विश्वविजेता अशोक कहते है कि ब्रिटिश साम्राज्य के समय उनमें इतनी हिम्मत थी कि वह अपने सूटकेस में तिरंगे को लेकर बर्लिन ओलिंपिक-1936 खेलने गए थे. उन्होंने कहा, “जब भारत ने फाइनल में जर्मनी को हराया था तब दादा ने भारत के झंडे (उस समय भारतीय झंडे में अशोक चक्र की जगह चरखा होता था।) को लहराया था.”

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