ऑस्ट्रेलिया में वॉयस ऑफ सिडनी में अपने सुरों के जादू से निर्णायक मंडल में शामिल संगीत के दिग्गज उस्तादों को भी शहर की बेटी शाम्भवी ने कायल बना लिया। हिन्दुस्तानी संगीत के अलग-अलग आयामों को उसने अपने अंदाज में मखमली आवाज में प्रस्तुत किया। शाम्भवी ने ‘वॉयस ऑफ सिडनी सुरों का ताज’ के दूसरे स्थान पर विजेता का ताज पहन शहर ही नहीं हिन्दुस्तान का नाम भी लहरा दिया। इकतारा क्या बोले…, मोह-मोह के धागे… जैसे गानों की प्रस्तुति ने शाम्भवी को फाइनल 12 में से अंतिम तीन में पहुंचाया।

दो महीने से चल रही इस प्रतियागिता का ग्रैंड फिनाले 11 मई को ब्लैक टाउन में हुआ। 70 प्रतिभागियों में 12 का चयन किया गया था। फाइनल के पहले राउंड की प्रतियोगिता के बाद छह चयनित हुए और अंतिम में तीन पहुंचे।

संगीत के अपने जुनून के कारण मुजफ्फरपुर से मुंबई पहुंची शाम्भवी अब ऑस्ट्रेलिया में अपने सुरों का जादू बिखेर रही है। ब्रह्मपुरा निवासी मुकेश कुमार और चिन्मई सिन्हा की इस बेटी को संगीत विरासत में अपने नाना अवधेश प्रसाद सिन्हा से मिला है। शाम्भवी कहती है कि 2011 में मुंबई पहुंची। दो साल के कड़े संघर्ष के बाद स्वर कोकिला लता मंगेशकर के स्टूडियो स्वर्ण लता में गाने का मौका मिला। यही मेरे सिंगिंग कॅरियर का टर्निंग प्वाइंट था। एमटीवी के लाइव शो समेत कई शो की विजेता रह चुकी शाम्भवी इस जीत के बाद अब विदेश में हिन्दुस्तान संगीत की लहर बिखेरने के लिए तैयार है।

सिडनी ग्रुप के साथ हिन्दुस्तानी संगीत को करेंगी प्रमोट: शाम्भवी कहती हैं कि दूसरे स्थान पर विजेता बनने के बाद सिडनी के दो एलबम का अनुबंध मिला है। सिडनी ग्रुप के साथ हिन्दुस्तानी संगीत को प्रमोट करना मेरा लक्ष्य है। निर्णायक मंडल ने जब यह कहा कि एक छोटे से शहर की बेटी ने पूरे देश का परचम लहरा दिया तो यह सबसे बड़ा अवार्ड था मेरे लिए।

Input : Hindustan

 

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