लोक आस्था का महापर्व छठ की धूम देश ही नहीं विदेशों में भी है। सात समंदर पार भी वहां रहने वाले भारतीय खासकर बिहार के लोग पूरी निष्ठा के साथ इस पर्व को मनाते हैं। इस महापर्व की झलक लंदन व अमेरिका में भी देखने को मिलती है। पश्चिम चंपारण के बगहा निवासी नीता मिश्रा और उनके पति धनंजय मिश्रा लंदन में ही पिछले कई सालों से इस महापर्व को मनाते आ रहे हैं। गुरुवार को भी यहां निष्ठा से छठ मनाने की तैयारी चल रही है।

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नीता पिछले नौ सालों से छठ कर रही हैं। गए दो सालों से इनके घर पूजा पर लंदन के कई मूल निवासी भी उपस्थित होते हैं। वे भी इनके साथ शारदा सिन्हा के छठ गीत गुनगुनाते हैैं।

नीता बताती हैैं कि बचपन से माता-पिता से छठ की महिमा सुनी, गांव-घर में पर्व होते देखा। साल 2000 में बगहा निवासी धनंजय मिश्रा से ब्याह कर ससुराल पहुंची तो वहां भी इस महापर्व का चलन देखा। फिर 2009 में छठ व्रत करना आरंभ किया। पेशे से सॉल्यूशन आर्किटेक्ट मेरे पति उसी वर्ष लंदन चले गए थे। मैं 2010 में आई। तब से लंदन स्थित घर में छठ व्रत करने लगी। मेरे घर भारतीय मूल के लोगों के साथ लंदन के स्थानीय लोग भी पूजा में शामिल होते हैैं। जब प्रसाद के रूप में ठेकुआ बनाने पति व बच्चों के साथ बैठती हूं तो पड़ोस में रहने वाले भारतीय और विदेशी भी आ जाते हैैं। फिर पद्म भूषण शारदा सिन्हा के छठ गीत-‘कांच ही बांस के बहंगिया…, ‘उ जे केरवा जे फरेला घवद से…, आदि गीत मेरे साथ विदेशी महिलाएं भी गुनगुनाने लगती हैैं। धनंजय कहते हैं कि माता-पिता से मिले संस्कार और अपनी मिट्टी की खुशबू दिल में है। यह व्रत हमारी परंपरा और आस्था में समाया हुआ है। हम इसे पूरी निष्ठा के साथ करते हैैं।

अमेरिका-आस्ट्रेलिया मेें बिहार से भेजी जाती पूजन सामग्री

पश्चिम चंपारण यहां के कई परिवार आस्ट्रेलिया और अमेरिका में बस गए हैं। लेकिन, ये अपनी सांस्कृतिक विरासतों को संजोए  हुए हैं। आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में संतोष गुप्ता हों, मेलबर्न में प्रियंका सिन्हा या फिर अमेरिका में बतौर इंजीनियर कार्यरत प्रशांत प्रभाकर, ये पूरी निष्ठा से छठ अनुष्ठान करते हैं।

इस साल भी इनके घर पूजा की तैयारी है। छठ मईया के गीत गूंज रहे हैं। इनका मानना है कि हम अपनी माटी की सुगंध खोना नहीं चाहते। संतोष गुप्ता व प्रियंका सिन्हा की मानें तो बीते कई वर्षों से छठ पर घर नहीं लौट पाते थे। इसलिए यहीं पूजा करते हैं। इस बार भी पूजा विधिपूर्वक होगी। यहां गंदगी फैलाने पर पूर्णतया पाबंदी है। इसका ख्याल रखते हुए स्वीङ्क्षमग पूल को ही छठ घाट की शक्ल देते हैं। विदेशी भी हमारी भावनाओं का आदर करते हैं। पूजनोत्सव को देखने व प्रसाद ग्रहण करने पहुंचते हैं।

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बिहार से भेजी जाती पूजन सामग्री 

अमेरिका में कार्यरत इंजीनियर प्रशांत प्रभाकर कहते हैं कि अब चाहकर भी छठ के अवसर पर देश नहीं लौट पाते हैं। बिहार से घर के लोग पूजन सामग्री भेज देते हैं। जब छठ गीत गूंजता है तो लगता है कि मैं स्वजनों के बीच रामनगर में हूं।

नेहा उपाध्याय बीते 19 सालों से वाशिंगटन में रह रही हैं। कहती हैं कि बिहार के कई परिवार यहां रहते हैं। सभी एक साथ छठ पूजा करते हैं। कुछ पूजन सामग्री यहां मिल जाती है, जबकि कुछ बिहार से आने वाले लोग लेकर आते हैं। नेपाली टोला निवासी अर्पित आनंद आस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में रहते हैं। ये और इनकी इनकी पत्नी मंजू उपाध्याय हर साल छठ करती हैं। वे स्वीङ्क्षमग पूल में खड़े होकर भगवान भाष्कर को अघ्र्य देते हैं। आस्ट्रेलिया में रह रही नेहा व प्रसून उपाध्याय भी छठ पूजन की तैयारी में हैं। यहां छठ पूजा के लिए एक समिति गठित की गई है जो सभी सामग्री की व्यवस्था के साथ पूजन का स्थान चयनित करती है।

Input : Dainik Jagran

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