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नहाय-खाय के साथ चैती छठ शुरू, खरना आज

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मुजफ्फरपुर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। नहाय-खाय के साथ शनिवार से चार दिवसीय चैती छठ का अनुष्ठान शुरू हो गया। इसके लिए बूढ़ी गंडक सहित सरावरों में व्रतियों की भीड़ जुटी। जो नदी स्नान के लिए नहीं जा सके, घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया। फिर अरवा चावल, चना-अरहर की दाल व कद्दू की सब्जी महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया।

वहीं, दिन में गेहूं को धोकर सुखाने के बाद शाम में गेहूं को मिल में भेजा। छठ व्रती रविवार की शाम खीर और रोटी व केला के साथ खरना पूजा करेंगी। इसी के साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा। चैती छह का पहला अर्घ्य सोमवार की शाम 5 बजे दिया जाएगा। वहीं सप्तमी तिथि मंगलवार को 600 बजे से सुबह का अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। पंडित जय किशोर मिश्र ने बताया कि चैती छठ ज्यादातर लोग घरों में ही करते हैं। साफ-सफाई नहीं होने से तालाब या नदी तट पर कम लोग जाते हैं।

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Source : Hindustan

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साल की सबसे बड़ी निर्जला एकादशी आज, जाने इस तिथि का महत्व

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31 मई 2023 यानी कि आज निर्जला एकादशी है। यह सबसे बड़ी निर्जला एकादशी है। कहा जाता है कि व्रत 24 एकादशियों का फल प्रदान करता है। हिंदू धर्म में 24 एकादशियां होती हैं जिसमें इसे सबसे फलदायक माना जाता है। इस व्रत को रखना थोड़ा कठिन होता है क्योंकि इसमें एकादशी तिथि के सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी के सूर्योदय तक बिना अन्न-जल ग्रहण के रहना पड़ता है।

ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्रती को धन, सौभाग्य, सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं इस साल निर्जला एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग का बना है। कहा जाता है कि पांचो पांडवों ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत रखा था। जिस वजह से इसे “पांडव निर्जला एकादशी” भी कहा जाता है।

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जानिए बिहार के सूर्य मंदिर के बारे में जिसका निर्माण स्वंय भगवान विश्वकर्मा ने करवाया था

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बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर अनोखा है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में कर दिया था। यह भारत का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पूर्व की ओर न होकर पश्चिम की तरफ है। इस प्रसिद्ध मंदिर में सूर्य देवता की मूर्ति सात रथों पर सवार है। इसमें उनके तीनों रूपों उदयाचल(प्रात: सूर्य), मध्याचल (मध्य सूर्य)और अस्ताचल (अस्त सूर्य)के रूप में देखने को मिलता है।

यह मंदिर करीब एक सौ फीट ऊंचा है। औरंगाबाद का सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। जानकारी के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण डेढ़ लाख वर्ष पूर्व किया गया था। यह मंदिर भारत के विस्मयकारी मंदिरों में से एक है। इसे काले और भूरे पत्थरों से बनाया गया है।

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औरंगाबाद से करीब 18 किलोमिटर दूर यह सूर्य मंदिर ओड़िशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर से मेल खाता है। मंदिर के बाहर शिलालेख है,जिस पर ब्राह्मी लिपि में एक श्लोक लिखा है। जिसके मुताबिक इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पहले इस मंदिर का द्वार पूर्व की तरफ ही था लेकिन एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव पहुंचा। वहां जाकर उसने मंदिर को तोड़ने की कोशिश की लेकिन पुजारियों ने बहुत विनती की। जिसके बाद उसने कहा कि यदि सच में तुम्हारे ईश्वर में शक्ति है तो कल सुबह तक इसका द्वार पश्चिम की तरफ हो जाना चाहिए।

औरंगजेब अपनी बात रखकर चला गया लेकिन पुजारी सोच में पड़ गए कि अब मंदिर का द्वार कैसे बदलेगा। जिसके बाद उन्होंने सूर्य भगवान की पूजा की। अगली सुबह जब सब वहां गए तो उन्होंने देखा कि मंदिर का द्वार पूर्व से पश्चिम की तरफ हो गया है। कहते है कि इस मंदिर का निर्माण राजा ऐल ने करवाया था। ऐसी मान्यता है कि यहां लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है।

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हिंदू धर्म में केले के पत्ते का महत्व, हर कष्ट का होता है निवारण

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हिंदू धर्म में कई पेड़-पौधों का पूजा किया जाता है। उन्हीं में से केले का पेड़ का एक है। पूजा पाठ के दौरान केले का फल, उसके तने और पत्तों का उपयोग किया जाता है। उत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत में केले के पत्ते का उपयोग वृहद स्तर पर किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि केले के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी निवास करती है। गुरुवार की पूजा केले के जड़ में करके से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते है और इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। साथ ही सत्यनारायण भगवान की कथा में केले के पत्ते का मंडप बनाया जाता है। कहते है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को केले के का भोग लगाने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती है। घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है।

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वहीं मांगलिक दोष वाले व्यक्ति की शादी यदि केले के पेड़ से करा दी जाए तो वह दोष मुक्त हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि केले के पत्ते पर केला फल का भोग लगाया जाता है तो इससे दांपत्य जीवन में परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। दंपति को वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यदि आप अपने घर में केले का पेड़ लगाते है तो इससे आर्थिक संकट दूर हो जाता है और धन की प्राप्ति होती है।

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