कभी अपने सायरन से शहर को जगाने वाला भारत वैगन अब खुद सो गया। अपने अस्तित्व को नहीं बचा पाया। मुजफ्फरपुर की पहचान रहे भारत वैगन की दुर्दशा से जनप्रतिनिधियों ने अपना मुंह फेर लिया है। पुनर्वास पैकेज की तैयारी के बीच केंद्र सरकार की ओर से 23 अगस्त 2017 को कंपनी को बंद करने ऐलान किया गया। केंद्रीय कैबिनेट के ऐलान के अनुसार कंपनी को 31 अक्टूबर 2017 को बंद कर दिया गया।

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सरकार के निर्देश के अनुरूप वर्षों से बकाया वेतन आदि नहीं मिलने पर बंदी के दो साल बाद भी भारत वैगन इंजीनियरिंग कंपनी के कर्मियों की लड़ाई जारी है। कंपनी के 560 कर्मी वेतन व अन्य बकाया राशि के भुकतान के लिए कोर्ट से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़ रहे हैं। पीएम से लेकर सांसदों व विधायकों तक फरियाद अनसुनी होने पर कर्मियों ने हाईकोर्ट का रूख किया है। सरकार के आदेश के अनुरूप वेतनमान व अन्य राशि नहीं मिलने पर कर्मी यूनियन प्रबंधन के खिलाफ हाईकोर्ट में केस लड़ रहे हैं।

कर्मियों व अधिकारियों के बकाया वेतन आदि के भुगतान के लिए केंद्र सरकार ने 151 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी। भारत वैगन वर्कर्स यूनियन के महासचिव एसके वर्मा बताते हैं कि 151 करोड़ में से 70 करोड़ रुपये वितरित किए गए। 2007 के पे स्केल भुगतान की बात कही गई थी, लेकिन 1992 के पे स्केल पर भुगतान किया गया। सौ रुपये के बदले कर्मियों को महज 40 से 60 रुपये मिले। प्रबंधन की ओर से मांग अनसुनी किए जाने पर हाईकोर्ट का रूख करना पड़ा।

राइटस ने तैयार किया था पुनर्वास पैकेज

लगतार घाटे में चल रही भारत वैगन को पटरी पर लाने के लिए वर्ष 2016 में राइटस ने विस्तृत योजना बनायी थी। सौ करोड़ रुपये के निवेश से कंपनी को तीन साल में अंदर मुनाफा देने योग्य बनाने के लिए योजना बनी। राइटस की टीम ने स्थानीय इकाई का निरीक्षण भी किया। इस बीच नीति आयोग की सिफारिश पर सरकार ने कंपनी को बंद करने का ऐलान किया।

  • 151 करोड़ में से महज 70 करोड़ वितरित किए गए वेतन आदि के भुगतान पर
  • 560 कर्मी व अधिकारी वेतन व अन्य भुगतान के लिए कंपनी से लड़ रहे लड़ाई

 

भारत वैगन इंजीनियरिंग कंपनी पुल व रसोई गैस सिलेंडर भी बनाती थी। कोसी समेत कई नदियों पर कंपनी पुल बना चुकी है। इसके लिए राज्य की एजेंसी की ओर से कंपनी को ठेका दिया जाता था। वहीं औद्योगिक क्षेत्र बेला में कंपनी रसोई गैस सिलेंडर तैयार करती थी। हालांकि यह कंपनी मालगाड़ियों के वैगन के लिए प्रसिद्ध थी। निजी कंपनियों से होड़ में भारत वैगन की स्थित बिगड़ती चली गई।

रेलवे में समायोजन करने की मांग को लेकर छंटनी किए गए भारत वैगन के 24 कर्मियों की ओर से 233 दिनों से धरना जारी है। वे प्रतिदिन कंपनी की इकाई के मुख्य दरवाजे पर जुटते हैं। रोजाना धरना दिया जाता है। इस दौरान कर्मी अपनी मांगों को लेकर कई बार उग्र आंदोलन भी कर चुके हैं, लेकिन कर्मियों की मांग की कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है।

वीआरएस के लिए दो दर्जन कर्मी तैयार नहीं थे। कंपनी ने छंटनी कर दी। अब हमलोग रेलवे में समायोजन की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। मांग पूरी होने तक हमलोगों का आंदोलन जारी रहेगा। हम अपनी मांग से सरकार व प्रबंधन को अवगत करा चुके हैं, लेकिन मांगों को लेकर सरकार व प्रबंधन उदासीन है। -अमरेंद्र तिवारी, अध्यक्ष भारत वैगन लेबर यूनियन

भारत वैगन को बचाने के लिए दशकों तक सांसदों व मंत्रियों के समक्ष फरियाद लगायी गई। कंपनी को बचाने की जद्दोजहद के बीच इसे बंद करने का ऐलान किया जाता है। महासचिव के रूप में कई रेल मंत्री व सांसदों से मिला। ऐलान के अनुरूप वेतन आदि राशि का भुगतान नहीं किया गया। अंत में हमलोगों को हाईकोर्ट में फरियाद लगानी पड़ी। -एसके वर्मा, महासचिव भारत वैगन वर्कर्स यूनियन

Input : Hindustan

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