राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (National Consumer Commission) ने एक अहम फैसला सुनाया है. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने फैसले में कहा है कि हैकर्स (Hackers) या अन्य कारणों से ग्राहक (Customer) के बैंक‍ खाते से पैसे निकाले (Money Transactions) जाते हैं या धोखाधड़ी (Fraud) की जाती है तो इसमें ग्राहक की लापरवाही नहीं है. इस तरह के मामलों में बैंक प्रबंधन (Bank Management) की जिम्मेदारी बनती है. आयोग ने एक निजी बैंक को हैकर्स द्वारा निकाले पैसे के साथ-साथ केस का खर्च और मानसिक प्रताड़ना झेलने के एवज में भी पैसे देने को कहा है. पिछले साल ही 20 जुलाई को देश में मोदी सरकार (Modi Government) ने नया कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 (Consumer Protection Act-2019) लागू किया था. इस एक्ट के लागू हो जाने के बाद देश में इस तरह का यह पहला मामला है, जिसमें राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने बैंक प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है.

Hacking a Bank : 101 | Hacker Noon

बैंक की जवाबदेही ऐसे तय होगी

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के जज सी विश्वनाथ ने क्रेडिट कार्ड की हैकिंग की वजह से एक एनआऱआई महिला से हुई धोखाधड़ी में बैंक को जिम्मेदार ठहराया है. जज ने एचडीएफएसी बैंक की ओर से दायर याचिका खारिज करते हुए आदेश जारी किया कि बैंक पीड़ित महिला को 6 हजार 110 डॉलर यानी करीब 4.46 लाख रुपये 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाए.

पीड़िता को इस तरह मिला मुआवजा

उपभोक्ता विवाद आयोग ने यह भी निर्देश दिया कि बैंक पीड़िता को मानसिक मुआवजे के तौर पर 40 हजार और केस खर्च 5 हजार रुपये भी लौटाए. आयोग का कहना था कि बैंक ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया, जिसमें पीड़िता का क्रेडिट कार्ड किसी अन्य ने चोरी कर लिया था. दूसरी तरफ पीड़ित महिला ने दावा किया कि उसके खाते से पैसे किसी हैकर ने निकाले हैं और बैंक के ई-बैंकिंग सिस्टम में खामी है.

हैकिंग की आशंका से इनकार नहीं

उपभोक्ता विवाद आयोग ने यह भी कहा कि आज के डिजिटल युग में क्रेडिट कार्ड की हैकिंग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में ग्राहक के खाते की सुरक्षा की जिम्मेदारी बैंक प्रबंधन की है. इसलिए बैंक प्रबंधन को चाहिए कि वह ग्राहक के खाते की सुरक्षा के लिए उचित उपाय भी करे.

नए उपभोक्ता संरक्षण कानून में उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, मध्यस्थता, उत्पादों के लिए तय जिम्मेदारी और मिलावटी/खतरनाक उत्पाद बनाने और बेचने पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान, उपभोक्ताओं को अधिक सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है. आपको बता दें कि देशभर की उपभोक्ता अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित उपभोक्ता शिकायतों को हल करने के लिए भी इस अधिनियम का गठन किया गया है. नए कानून में उपभोक्ता शिकायतों को तेजी से हल करने के तरीके और साधन दोनों का प्रावधान किया गया है. 24 दिसंबर 1986 को देश में पहला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पारित किया गया था. साल 1993, 2002 और 2019 में संसोधन करते हुए इसे और प्रभावी बनाया गया है.

Source : News18

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