देवघर में सदियों से लग रहे श्रावणी मेला कोरोना की वजह से लगातार दूसरे साल भी आयोजित होता नजर नहीं आ रहा है। बिहार और झारखंड सरकार अभी तक इस मामले पर चुप है। इसी कारण संशय बरकरार है। सावन के आने में केवल एक हफ्ता बचा है। 25 अगस्त को गुरु पूर्णिमा है। और 26 अगस्त को पहली सोमवारी है।

ज़िले के सुलतानगंज समेत भागलपुर के गंगा नदी घाट गेरुआ वस्त्रधारियों के बिना सूना है। कोरोना की वजह से देवघर बाबा बैद्यनाथ और वासुकीनाथ धाम मंदिर झारखंड सरकार ने पहले से ही बंद कर रखा है। वहीं बिहार सरकार ने धार्मिक स्थलों को अनलाकडाउन-4 में भी खोलने की इजाजत नहीं दी है। सख्त पाबंदी है। इन्हें 8 अगस्त तक बंद रखने का आदेश है। जाहिर है सावन में इस दफा भी गेरुआ वस्त्रधारी कांवड़ियों का जन सैलाब के अभाव में सन्नाटा ही पसरा रहेगा।

देवघर पंडा धर्मरक्षणि सभा की तरफ से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस बाबत मांग पत्र भेजा गया है। संस्था के महासचिव कार्तिक ठाकुर बताते है कि उनकी मांगों को मुख्यमंत्री ने गंभीरता से सुना है, लेकिन सावन में मंदिर खोलने के बाबत उन्होंने कोई भरोसा नहीं दिया है। पंडा धररक्षणि सभा की मांग है कि बाबा बैद्यनाथ और वासुकीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों के लिए सरकार आर्थिक पैकेज की घोषणा करें। मंदिर से जुड़े दुकानदारों और व्यवसायियों को आर्थिक मदद दी जाए। तीर्थ पुरोहितों के लिए बीते साल की तरह ही अनाज वितरण का इंतजाम सभा के जरिए किया जाए।

मंदिर कर्मचारियों के माध्यम से दिया जाने वाला सूखा अनाज के तरीके से तीर्थ पुरोहितों के सम्मान को ठेस पहुंच रही है। मंदिर में किए जाने वाले निर्माण की जानकारी सभा को हो और उसकी अनुमति ली जाए। बाबा मंदिर में टीका लिए भक्तों के प्रवेश और जलाभिषेक करने की अनुमति मिले। कोरोना से मरे परिजनों को मुआवजा दिया जाए। रोजाना आरती के समय लाउडस्पीकर को हटाने की मंदिर कर्मचारियों की धमकी पर ध्यान दिया जाए। देवघर एयरपोर्ट का नामकरण बाबा बैद्यनाथ पर हो।

हालांकि बीते साल पंडा धर्मरक्षणि सभा मंदिर के पट सावन में खोलने के खिलाफ थी, तो सांसद निशिकांत दुबे पक्ष में थे। दरअसल गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे चाहते थे कि श्रद्धालुओं के लिए सावन में मंदिर खोला जाए और कांवर यात्रा कोरोना नियमों का पालन करते हुए हो। इसके लिए उन्होंने रांची उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की थी। जिसपर मुख्य न्यायाधीश डा.रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद ने फैसला सुनाते हुए सरकार के आदेश को बरकरार रखा था। और ऑन लाइन बाबा बैद्यनाथ के दर्शन कराने का इंतजाम करने को कहा था। उनका तर्क था कि दर्शन के साथ देवघर मंदिर और सावन कांवड़ मेले से लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी है। इस दफा भी कोविड-19 के नियमों का पालन कराते हुए बाबा मंदिर के पट खोलने की उनकी मांग है।

भागलपुर के सुलतानगंज से देवघर 105 किलोमीटर और वहां से 60 किलोमीटर वासुकीनाथ की यात्रा करने पर इस संवाददाता ने पाया कि जिन रास्तों पर हरेक साल दुकानें, कांवड़ियों के लिए सेवा शिविर, सफाई और इलाका जगमग होता था, वह सुनसान पड़ा है। सुलतानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा नदी से 50 लाख श्रद्धालु हरेक साल कांवड़ में जल भर पैदल कष्टप्रद यात्रा कर द्वादश ज्योर्तिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते है। इस साल भी यह सिलसिला थम गया। यह रास्ता जहां गेरुआ बाना पहने लाखों श्रद्धालुओं के बोल बम के जैकारे से गुंजायमान होता था। वह रास्ता वीरान है। कोरोना ने सब कुछ रोक दिया है। शाम के बाद तो घटाटोप अंधेरा भुतहा रास्ता जैसा लगता है। इक्की-दुक्की गाड़ियों की हॉर्न ही सन्नाटे को तोड़ती है।

देवघर के उपायुक्त मंजू भन्त्री ने बाबा बैद्यनाथ मंदिर इलाके का मातहत अधिकारियों व पुलिस के आलाधिकारियों के साथ मुआयना किया है। शिवगंगा व मंदिर जाने के रास्तों को बांस-बल्लियों से घेरा है। ताकि बाहर से कोई श्रद्धालु वहां पहुंच शिवगंगा में न स्नान करें और न ही मंदिर इलाके में प्रवेश कर पाए। बाबा की सरकारी पूजा के अलावे किसी को पूजा करने की इजाजत नहीं है। इसके लिए पुलिस बल चारों ओर से चप्पे-चप्पे पर मजिस्ट्रेट के साथ तैनात किए गए है। देवघर में प्रवेश से लेकर मंदिर के रास्तों पर नाके बनाए गए है। उपायुक्त के आदेश पर पुलिस और मजिस्ट्रेट की पाली बनाई गई है। मसलन नाका किसी हाल में ढीला न छोड़ा जाए। बल्कि दूसरे राज्य की गाड़ियों को भी रोक कर पूछताछ की जा रही है। बसों और सार्वजनिक यात्री वाहनों पर देवघर प्रवेश पर रोक है। निजी वाहन भी पास लेकर ही प्रवेश करने की इजाजत है। जबकि भारत सरकार ने अनलाकडाउन-1 में ही एक राज्य से दूसरे राज्य जाने के लिए किसी तरह के पास लेने की जरूरत से मुक्त कर दिया है। पर यहां नियम अब भी है।

हालांकि इस दफा बाबा मंदिर पंडा धर्मरक्षणी सभा के महामंत्री कार्तिक ठाकुर की मांग मंदिर खोलने की है। ये चाहते है कि कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए श्रद्धालुओ के लिए ढील दी जाए। आर्थिक हालत खास्ता का मुल्लमा दे रहे है। जबकि बीते साल मंदिर न खोलने के हाईकोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की थी। और कहा था कि यह जनहानि को रोकने का निर्णय है। जनहित याचिका में धर्मरक्षणी सभा भी एक मुदालय थी। बीते साल उनका कहना था कि आर्थिक क्षति की पूर्ति हो सकती है। मगर आदमी के नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती। देवघर शहर भी बेरौनक है। इनदिनों भक्तिभाव के गानों और कांवड़ियों की गहमागहमी से एक हद तक अटा रहने वाला शहर कोरोना के भय से गुमसुम है। व्यापारी विजय कुमार शर्मा बताते है कि सब फीका-फीका है। लगता ही नहीं कि सावन आने वाला है। मध्यमबर्गीय परिवारों की कमर टूट सी गई है। इनकी बिडंबना देखिए इनके पास कुछ है नहीं। सरकार को भी इनकी सुध नहीं । और कोई इनकी मदद भी नहीं करता। और करे भी तो इनका स्वाभिमान इन्हें रोक देता है।

पर सामाजिक सेवक संजय भारद्वाज, शिवकुमार मिश्रा, शोभन नरोने, सुनील मिश्रा कहते है कि कोरोना की दूसरी लहर में सैकड़ों परिवार उजड़ गए है। घर में कमाने वालों को ही कोरोना ने निगल लिया है। आमदनी का टोटा हो गया है। मगर कोई मुआवजा नहीं मिला है। पंडा समाज और दूसरे लोगों को जीविका चलाना मुश्किल हो गया है। ये चाहते है कि स्थानीय लोगों को कम से कम सावन की सोमवारी को जलाभिषेक की इजाजत मिलनी चाहिए। देवघर में कई लोग ऐसे है जो सावन में बाबा का जलाभिषेक कर ही अन्न-जल ग्रहण करते है। ऐसा इनलोगों ने बताया। मगर कोरोना ने जब सदियों पुरानी कांवड़ यात्रा ही रोक दी और पूजाअर्चना की मनाही है। तो बाकी कुछ नहीं बचा। ऑनलाइन दर्शन कीजिए और बोल बम का जयकारा घर से ही लगाइए।

Input: jansatta

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