शिक्षा, सीख और दोस्ती उम्र या फिर संसाधनों की मोहताज नहीं होती। पढ़ाई और हुनर उम्र के किसी दौर में हासिल किए जा सकते हैं ऐसा ही कुछ कर दिखाया 70 वर्ष के रामअवतार ने। बचपन में शिक्षा पूरी नहीं होने पर वह अब 70 की उम्र में एमए अंग्रेजी से कर रहे हैं।

इसी पढ़ाई के जुनून और सकारात्मक सोच ने उन्हें चपरासी से बाबू की कुर्सी दिला दी।

रामनगर पीएनजी पीजी कॉलेज में 70 वर्ष के रामअवतार को कंधे में काला बैग और पैर में चप्पल देखकर छात्र-छात्राएं दंग रह जाते हैं, लेकिन रामअवतार इसे अपनी कमजोरी नहीं मानते। उनका मकसद पढ़कर डिग्री पाना है। शनिवार को हिन्दुस्तान से बातचीत में खताड़ी निवासी रामअवतार ने बताया बचपन में परिजनों के पास पढ़ाने को पैसे नहीं थे।

फिर भी आठवीं तक पढ़कर 1974 में नगरपालिका में चपरासी बन गये। स्टॉफ के साथियों का प्रमोशन हुआ, लेकिन उनकी पढ़ाई पूरी नहीं होने पर प्रमोशन नहीं हो सका। तभी से उन्हें पढ़ने की धुन लगी और 1998 में हाईस्कूल पास कर 1999 में प्रमोशन पाया और बाबू बन गये। 2012 में इंटर करने के बाद रामनगर महाविद्यालय से बीए की रेगुलर पढ़ाई शुरू की।

वे 2015 में नौकरी से रिटायर होने के बाद नियमित छात्र के तौर पर अंग्रेजी से एमए कर रहे हैं। उनका मानना है कि किसी भी मुकाम को पाने के लिये पढ़ाई जरूरी है। पढ़ाई की जिद ने ही उन्हें कॉलेज की राह दिखाई।

हाईस्कूल पास करने में लगे सात साल
हाईस्कूल पास करने में रामअवतार को सात साल लग गये। 1991 में हाईस्कूल की परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के तौर पर दी। लगातार फेल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। आखिर 1998 में हाईस्कूल पास किया।

हाईस्कूल पास करने में रामअवतार को सात साल लग गये। 1991 में हाईस्कूल की परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के तौर पर दी। लगातार फेल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। आखिर 1998 में हाईस्कूल पास किया।

Input : Live Hindustan

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