ठीक 27 साल बाद बिहार की राजनीति में उधम मचाने के लिए ‘बंदर’ फिर डाल से उतर आया है। संयोग से इस बार भी इसके तार राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से जुड़े हुए हैं। उस समय भी उन्हीं के प्रसंग में उतरा था। तब उनके कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री रहे नरेंद्र सिंह ने ‘बंदर के हाथ में नारियल’ कहा था। नारियल का उदाहरण सत्ता के रूप में दिया गया था। लालू प्रसाद ने भी नरेंद्र सिंह को जवाब में ‘छछूंदर के माथे चमेली का तेल’ कहा था।

अभी की बात करें तो एक बार फिर ‘बंदर’ की चर्चा लालू प्रसाद यादव की किताब के संदर्भ में हो रही है, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में कहा है कि वे ‘सत्ता के लिए वे बंदर की तरह इस डाल से उस डाल पर आते-जाते रहते हैं।’

तब चर्चा में कुछ यूं आया था बंदर

साल 1990 में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने। उस समय रामसुंदर दास का खेमा उनका विरोध कर रहा था। विक्षुब्ध गतिविधियों के कारण मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। दास खेमे के मुखर नेता नरेंद्र सिंह स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। साल भी नहीं बीता था उन्होंने विद्रोह कर दिया। पहले बयानों के जरिए कहासुनी हुई, फिर मामला लिखत-पढ़त में आ गया। नरेंद्र सिंह ने लालू प्रसाद को चिट्ठी लिखी, ‘आपके हाथ में बिहार, माने बंदर के हाथ में नारियल’ है। जिस तरह बंदर नारियल फोडऩे के चक्कर में अपना चेहरा लहूलुहान कर लेता है, उसी तरह आप शासन के जरिए अपने साथ कर रहे हैं। पत्र में ‘बंदर के हाथ में उस्तरा’ का भी जिक्र था।

छुछुंदर भी आ गया था मैदान में

इसके बाद तो पत्र लेखन का सिलसिला शुरू हो गया। लालू प्रसाद यादव ने नरेंद्र सिंह को जवाबी पत्र लिखा, ‘छछूंदर के माथे चमेली का तेल।’ उन्हें दिए गए मंत्री पद को लालू प्रसाद ने तेल बताया था। खैर, वह प्रसंग कुछ दिन चला। अगले चुनाव तक दोनों में दोस्ती हो गई। आज की तारीख में नरेंद्र सिंह जमुई के जंगल-पहाड़ में घूम-घूमकर लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन के उम्मीदवार भूदेव चौधरी के लिए वोट मांग रहे हैं।
उस पत्र की याद दिलाने पर नरेंद्र सिंह अतीत में चले गए। बोले, राजनीति में यह सब चलता ही रहता है। हमको तो याद भी नहीं है।

तब बेहद नाराज हुए थे लालू

नरेंद्र सिंह के ‘बंदर’ का जवाब लालू प्रसाद यादव ने दे दिया था, लेकिन एक पत्रिका के ‘बंदर’ से वे बेहद आहत हुए थे। 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव अजेय बहुमत लेकर आए थे। अगले साल के नवंबर में भोपाल से प्रकाशित एक पत्रिका ने लालू प्रसाद की तस्वीर के साथ कवर पर ‘बंदर के हाथ में बिहार’ लिखा। सच कहिए तो इस ‘बंदर’ ने कई दिनों तक उत्पात मचाया। लालू प्रसाद ने पटना के कई पत्रकारों को अपने आवास पर बुलाया। कहा, आप लोग मेरे खिलाफ इतना छापते हैं। हमने कभी विरोध नहीं किया, लेकिन इस पत्रिका से आहत हैं। उसने अपमानजनक टिप्पणी की है।

पत्रिका टीम के कोर मेंबर रहे धनंजय कुमार मानते हैं कि सचमुच, लालू के बारे में ऐसा लिखना उचित नहीं था। कुमार के मुताबिक कवर स्टोरी को लेकर जनता दल के तत्कालीन विधायक हसन रिजवी और मुंगेर के एक वकील ने पत्रिका पर मुकदमा भी किया था, लेकिन बाद में लालू ने उस प्रसंग को अधिक तूल नहीं दिया।

Input : Dainik Jagran

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