मुजफ्फरपुर : बारिश से कई वर्षों के बाद लीची के लिए मौसम अनुकूल बना हुआ है। तापमान और आर्द्रता दोनों लीची के लिए फायदेमंद साबित हो रहा रहा है। ुइससे लीची को विकसित होने का समय मिल रहा है। लीची अनुसंधान केंद्र व किसानों के अनुसार लीची को वर्षों बाद तापमान चार महीने एक समान मिल रहा है। इसमें मंजर से लेकर दाना निकलने और अब कुछ दिनों में पकने तक तापमान एक समान है। जब भी तापमान तीस से ऊपर पहुंचने लगता है तो बारिश हो जा रही है। इससे तापमान में 30 के नीचे पहुंच जा रहा है। लीची को गूदेदार बनाने के लिए तापमान काफी अहम होता है। विशेषज्ञों और किसानों के अनुसार इस बार जैसी स्थिति बनी हुई है। इससे शाही लीची के बड़े और गूदेदार होने की संभावना है। लीची अनुसंधान केद्र की ओर से राज्य सरकार व जिला प्रशासन को दी गई रिपोर्ट में कहा गया कि इस बार जिले में लीची का उत्पादन एक लाख टन से अधिक होने का अनुमान है। अग्रणी किसान भोला नाथ झा के अनुसार, बचपन से लीची की खेती कर रहे हैं, लेकिन लीची के लिए ऐसा अनुकूल मौसम कभी नहीं देखा।

इन सब के बावजूद किसानों की चिंता लीची की बिक्री को लेकर है। वे बताते हैं कि लॉकाडाउन के कारण 90 फीसद से अधिक किसानों के लीची के बाग नहीं बिके हैं। लीची का इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन होगा वह बिकेगा कहां, लीची का बाजार लॉकडाउन के कारण शुरू ही नहीं हो सका है। भोला नाथ झा बताते हैं कि जिले में लीची के 10 बड़े कारोबारी हैं, जो मुम्बई व दिल्ली में लीची यहां से सप्लाई करते हैं। लेकिन कोरोना के कारण बाजार ध्वस्त हो चुका है। किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो जाएगा।

सचिन को नहीं खिला पाउंगा लीची : सुधीर मुजफ्फरपुर। दिल्ली से लौटे सचिन के सुपर फैन सुधीर कुमार ने मायूस लहजे मे कहा कि कोरोना संकट में इस बार वे सचिनको मुजफ्फरपुर की लीची नहीं खिला पाएंगे। हर साल वे लीची लेकर मुंबई जाते रहे हैं। लॉकडाउन में दिल्ली से चलकर लखनऊ में फंसे सुधीर कुमार गौतम शुक्रवार शाम अपने घर पहुंचे।

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9840 हेक्टेयर में हैं लीची के बाग : मुजफ्फरपुर में 9840 हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। वहीं राज्य भर में लीची की 32 हजार हेक्टेयर में खेती हो रही है। उत्तर बिहार में मुजफ्फरपुर के अलावा समस्तीपुर, चंपारण, सीतामढ़ी, दरभंगा व मधुबनी में लीची की खेती होती है। यहां मुख्य वेरायटी शाही व चायना लीची पायी जाती है।

दस से पंद्रह दिन देरी से पकेगी शाही लीची : कुछ वर्षों से देखा जा रहा था कि मंजर के बाद दाना के समय तापमान 35-37 डिग्री के आसपास रहती थी। इससे लीची को विकसित होने का मौका नहीं मिलता था। छोटे आकार में ही शाही लीची पकने लगती थी। लीची के लिए अनुकूल तापमान 30 डिग्री के नीचे माना जाता है।

Input : Hindustan

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