सूर्य उपासना का महापर्व छठ हिन्दू नववर्ष के पहले महीने चैत्र के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व संतान, अरोग्‍य व मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये रखा जाता है।

इसको रखने से तन मन दोनों ही शुद्ध रहते हैं। इस व्रत को पूरे विश्‍वास और श्रद्धापूर्वक रखने से छठी माता अपने भक्‍तों पर कृपा बरसाती हैं और उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं।

नहाय-खाय से सप्तमी के पारण तक व्रत रखा जाता है। इस दौरान लौकी की सब्‍जी और अरवा चावल को खाने का विशेष महत्‍व होता है। हिंदू पुराण के अनुसार ऐसा करने से मां को पुत्र की प्राप्‍ति होती है और वैज्ञानिक मान्‍यता के अनुसार महिला का गर्भाशय मजबूत होता है।

चैती छठ: महत्‍वपूर्ण दिन

नहाय-खाए : 9 अप्रैल

खरना-लोहंडा : 10 अप्रैल

सायंकालीन अर्घ्य : 11 अप्रैल

प्रात: कालीन अर्घ्य : 12 अप्रैल

खरना के प्रसाद का महत्व

हिंदू मान्‍यता के अनुसार छठ पूजा के दूसरे दिन खरना व्रत करने से परिवार में सुख शांति बनती है और संतान की प्राप्‍ति होती है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं व्रत कर शाम में स्नान कर रोटी और गुड़ से बनी खीर खाती हैं।

खीर एक प्रसाद के रूप में खाया जाता है जो कि मिट्टी के चूल्हे पर आम के पेड़ की लकड़ी जलाकर तैयार किया जाता है। माना जाता है कि गन्‍ने के रस से तैयार गुड़ खाने से स्‍किन का रोग दूर होता है। साथ ही आंखों का दर्द, शरीर के दाग धब्‍बे खत्‍म होते हैं।

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