देशभर में होली का त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। होली के मौके पर कहीं रंगों से तो कहीं फूलों से होली खेली जाती है। हिन्दु कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार शिशिर और वसंत ऋतु के बीच में पड़ता है। इसे ऋतुओं का संधिकाल भी कहा गया है। जब ऋतुओं में बदलाव होता है तब मानव शरीर में भी अचानक बदलाव होने लगते हैं। आपने महसूस किया होगा कि होली पर शरीर खुद को मौसम के अनुसार ढालने लगता है।

होली का त्योहार ना केवल हिंदु बल्कि देश में कई जगह मुस्लिम भी इस त्योहार का मनाते है और यही भारत देश की खूबसूरती है। देवा स्थित सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर होली में गुलाल की धूम होती है। हिंदू-मुस्लिम युवक एक साथ रंग व गुलाल में डूब जाते हैं। बाराबंकी का यह बागी और सूफियाना मिजाज होली को अन्य स्थानों से अलग कर देता है। ऐसी ही कई रवायतों को समेटे जिले की होली से रूबरू कराती है यहां की होली।

सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के चाहने वाले सभी धर्म के लोग थे। इसलिए हाजी साहब हर वर्ग के त्योहारों में बराबर भागीदारी करते थे। वह अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेल कर सूफी पंरपरा का इजहार करते थे। उनके निधन के बाद यह परंपरा आज भी जारी है। यहां की होली में उत्सव की कमान पिछले चार दशक से शहजादे आलम वारसी संभाल रहे हैं। वह बताते हैं कि यह देश की पहली दरगाह है, जहां होली के दिन रंग गुलाल के साथ जश्न मनाया जाता है। कौमी एकता गेट पर पुष्प के साथ चाचर का जुलूस निकाला जाता है। इसमें आपसी कटुता को भूलकर दोनों समुदाय के लोग भागीदारी करके संत के ‘जो रब है, वहीं राम है’ के संदेश को पुख्ता करते हैं।

Input : News24

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