पटना हाईकोर्ट ने कोविड डेडिकेटेड अस्पतालों के सभी बेड पर इलाज शुरू नहीं होने पर नाराजगी जताई। कहा कि संसाधनों के अभाव में मरीज भर्ती नहीं किए जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा, आरटीपीसीआर जांच रिपोर्ट की जगह एचआरसीटी चेस्ट स्कैन रिपोर्ट के आधार पर भी मरीजों को अस्पताल में भर्ती करें।
कोर्ट को बताया गया कि आईजीआईएमएस में 1070 बेड हैं, लेकिन फिलहाल 300 बेड पर कोरोना मरीजों का इलाज किया जा रहा है। ऑक्सीजन और मानव क्षमता की कमी के कारण इससे ज्यादा मरीजों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा सकता है। भले ही अस्पताल को डेडिकेटेड कोरोना अस्पताल घोषित किया गया है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अस्पताल में कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। बिहटा स्थित ईएसआईसी अस्पताल कई समस्याओं से जूझ रहा है। यहां राज्य सरकार दवाई सहित कई संसाधन उपलब्ध नहीं करा रही है। जिस कारण डॉक्टरों तथा पारा मेडिकल स्टाफ बैठे हुए हैं। वर्ग तीन व चार के कर्मियों की कमी बनी हुई है। साथ ही अस्पताल का प्रबंधन सही तरीके से नहीं किया जा रहा है।
पटना एम्स की ओर से अधिवक्ता विनय कुमार पांडेय ने कोर्ट को बताया कि कोविड तथा कोविड से सम्बंधित मरीजो के लिए 527 बेडों की व्यवस्था की गई है, जबकि अन्य रोगों के मरीजों के लिए 393 बेड रखा गया है। कोर्ट को यह भी बताया गया कि दवा और ऑक्सीजन की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी की जा रही है। इस पर लगाम लगाने का कोई उपाय नहीं नजर आ रहा है। वहीं, राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि निर्धारित कोटा 194 मीट्रिक टन ऑक्सीजन में से 134 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उठाव किया जा रहा है। कोर्ट को यह भी बताया गया कि बगैर आरटीपीसीआर जांच रिपोर्ट के कोविड अस्पताल में कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। जबकि आरटीपीसीआर जांच रिपोर्ट आने में कई दिन लग जा रहे हैं। वहीं, कोर्ट ने जानना चाहा कि मोतिहारी, पूर्णिया तथा मुंगेर में आरटीपीसीआर जांच घर चालू किया गया या नहीं। कोर्ट ने इस बारे में भी पूरी जानकारी देने का आदेश सरकार को दिया।
Input: Live Hindustan