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नेतागिरी के मामले में महिलाएं कभी कमजोर नहीं सोनिया, सुषमा, ममता और मायावती इसके उदाहरण
नयी दिल्ली। बरसों पुराना जुमला है कि महिलाओं को खुद इस बात का इल्म नहीं होता कि उनमें कितनी ताकत है। और तो और, दुनिया भी इन दिनों उनके हाथ मजबूत करने की बात कर रही है। महिला सशक्तिकरण की गूंज देस-परदेस तक सुनाई दे रही है। कहावत भी है कि जहां महिलाएं खुश रहती हैं, वही समाज आगे बढ़ने के ख्वाब देख सकता है। लेकिन देश की सियासत की कहानी कुछ और है। यहां महिलाओं को कम करके आंकना पुरुष नेताओं के लिए भारी पड़ सकता है। अतीत इस बात का गवाह रहा है और संभावनाएं इस बात के पर्याप्त संकेत दे रही हैं कि नेतागिरी के मामले में महिलाएं कभी कमजोर नहीं साबित होंगी। और ताकतवर होती जाएंगी। यूं कहा भी जाता है कि महिलाओं में गजब का संयम होता है और राजनीति में संयम से बढ़कर और क्या गुण चाहिए!
कोई केंद्र की राजनीति में इशारों से सरकार चलवाता रहा है, तो कोई अपने-अपने सूबों में बरसों पुराने किलों को ढहाकर कदम जमाने में कामयाब साबित हुआ है। सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, व मयावती व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसी महिला नेत्री भले अलग-अलग राजनीतिक दलों से हों, लेकिन सियासी हुनर की बात होने पर सब एक से बढ़कर एक हैं।
सोनिया गांधी: नेतागिरी सिखाने वालीं नेता
त्याग की ताकत, राजनीतिक चतुरता, रणनीतिक क्षमता और दोस्त बनाने में महारत। अगर किसी एक शख्स में ये सारी काबिलियत तलाश रहे हैं, तो एक नजर कभी यूपीए और कांग्रेस की बागडोर संभालने वालीं सोनिया गांधी पर जरूर डालनी होंगी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी की शुरुआत भले इटली में हुई, लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुद को भारतीय परिवेश में ढाल लिया, वो काबिल-ए-तारीफ है। पीएम की कुर्सी भले मनमोहन सिंह ने दस साल संभाली हों, लेकिन इन दस साल का कोई दिन ऐसा नहीं गया होगा, जब सोनिया ने अपनी ताकत का अहसास न कराया हो। लेकिन इसके वक्?त उनके सामने बड़ी चुनौती खड़ी है। अब कमान उनके पुत्र राहुल और पुत्री प्रियंका बाड्रा के हाथों में है। सामने नरेंद्र मोदी का पहाड़ खड़ा है और आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर कोई खास उम्मीद नहीं है। ऐसे में उन्हें सारा जोर इस बात पर लगाना चाहिए कि अप्रैल से शुरू हो रहे महासमर में कांग्रेस के नुकसान को किस तरह कम से कम किया जा सकता है।
मायावती: दलित वोट बैंक से सोशल इंजीनियरिंग
तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार। एक वक्त था जब इसी नारे के दम पर बहुजन समाज पार्टी ने दलित वोटों का ऐसा ध्रुवीकरण बनाया कि पुराने कई खिलाड़ी का खेल डोल गया। फिर बारी आई सोशल इंजीनियरिंग की। ऐसा फॉर्मूला जिसने अगड़ी जाति को भी मायावती के पीछे लाकर खड़ा कर दिया और एक बार फिर कई सूरमाओं के अरमान धरे के धरे रह गए। यह मायावती का जादू है, जो सिर चढ़कर बोलता है। उत्तर प्रदेश में विपक्ष की कुर्सियां संभाल रहीं मायावती इन दिनों लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुटी हैं और उनकी पार्टी से जुड़ी संभावनाएं भी अच्छी दिख रही हैं। विधानसभा चुनावों में भाजपा के हाथों मिली हार के बाद मायावती काम में जुट गई थीं। और अब वक्त आ गया इस बीच बनाई गई रणनीतियों को जमीनी स्तर पर अमली जामा पहनाया जाए। यह भी बड़ा सवाल बना हुआ है कि मायावती किसके साथ जाएंगी। भाजपा ने अब तक उनके खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार नहीं किया है, लेकिन मायावती, मोदी के नाम पर गुस्सा देख चुकी हैं। लेकिन राजनीति का कोई भरोसा नहीं है। चुनावी नतीजे बताएंगे कि हाथी कौन सी राह पकड़ता है। पर यह तय है कि लोकसभा सीटों का अपना कोटा पक्का करे बैठीं मायावती के दोनों हाथों में लड्डू दिख रहे हैं।
ममता बनर्जी: वाम दलों के पसीने छुड़ाने वालीं
देश का एक सूबा ऐसा है, जहां वामपंथियों ने एक या दो साल नहीं, बल्कि तीन दशक राज किया। विकास विरोधी नीतियों की तमाम आलोचनाओं के बावजूद वो हर बार चुनाव में खडे़ होते, लड़ते और जीत जाते। लेकिन इन तमाम साल एक महिला ऐसी थी, जो नतीजे के बारे में सोचे बिना जमीनी स्तर पर लगातार काम करती रही। और मेहनत का फल कई साल बाद मिला। यह ममता बनर्जी की जंग थी, जो उन्होंने अकेले लड़ी। और आज वो कितनी ताकतवर हैं, इसके बारे में बताने की जरूरत नहीं है। पश्चिम बंगाल में उनकी गद्दी संभली हुई है और अब निशाना इस तरफ है कि राष्ट्रीय राजनीति में अपना कद कैसे बढ़ाया जाए। दिल्ली में ताकत बनकर उभरे अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनावों के लिए झंडा बुलंद कर रहे हैं। वो लाख कोशिश कर चुके हैं कि अन्ना हजारे उनके साथ आ जाएं, जिनके आंदोलन पर उनका पूरा राजनीतिक करियर खड़ा हुआ है। अभी कांग्रेस पर अगास्ता डील तो भाजपा पर राफेल सौदे में कमीशनखोरी के आरोप लग रहे जो 17वीं लोकसभा के चुनाव में मुद्दा भी बनेगा। पर इन सारे आरोपों के बावजूद इन तीनों का राजनति में महिलाा सशक्तिकण की दिशा में किए गए राजनीतिक प्रयास को दरकिनार नहीं किया जा सकता। इस कड़ी में एक और नाम सुश्री जयललिता का भी आता है जिनकी मृत्यु हो गई।
Input : Khabar Manthan
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जमीन व फ्लैट के निबंधन में एक जून से गवाह की जरूरत नहीं

बिहार में जमीन, फ्लैट, मकान समेत अन्य के निबंधन का प्रावधान 1 जून से बदल जाएगा। अब निबंधन में गवाह की अनिवार्यता समाप्त होने जा रही है। किसी तरह के निबंधन में दो या चार गवाहों को लाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, न क्रेता को और न ही बिक्रेता को।
इस नए प्रावधान के तहत निबंधन कार्यालय में सिर्फ जमीन या फ्लैट खरीदने और बेचने वाले ही आएंगे। इस नए नियम को बहाल करने को लेकर उत्पाद, मद्य निषेध एवं निबंधन विभाग ने आदेश जारी कर दिया है। साथ ही संबंधित कंपनी को सॉफ्टवेयर में अहम बदलाव करने को भी कहा है। इसके लिए 1 जून तक की डेटलाइन दी गई है। इस बदलाव से अब सिर्फ जमीन-फ्लैट के क्रेता या खरीदने वाले को अपना-अपना आधार नंबर देना होगा और इसे बायोमीट्रिक प्रणाली के जरिए वैध करना होगा।
राज्य में 137 निबंधन कार्यालय हैं। इन सभी में रोजाना औसतन 5 हजार निबंधन होते हैं। नई प्रणाली से भीड़ कम होगी और राजस्व बढ़ेगा।
इसलिए समझा जा रहा है यह जरूरी
निबंधन कार्यालयों में जमीन-फ्लैट की रजिस्ट्री के दौरान लोगों की नाहक होने वाली भीड़ को कम करना मकसद है। एक रजिस्ट्री में चार या इससे अधिक गवाह होने से काफी संख्या में लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। इससे कार्यालय का कामकाज भी बाधित होता है और प्रक्रिया में समय भी अधिक लगता है। कई मामलों में गवाह जुटाने में भी कई बिचौलियों किस्म के लोग काफी सक्रिय रहते हैं। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए यह नई प्रणाली बहाल की जा रही है।
Source : Hindustan
BIHAR
नीतीश निर्देश- मास्क लगाएं, अस्पताल अलर्ट रहें; केंद्र वैक्सीन नहीं दे रहा तो खरीदें…

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज 1 अणे मार्ग स्थित ‘संकल्प’ में कोरोना के बढ़ते मामले को लेकर उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। बैठक में स्वास्थ्य विभाग के सचिव संजय कुमार सिंह ने राज्य में कोरोना संक्रमण की अद्यतन स्थिति तथा विभाग द्वारा की गयी तैयारियों के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले दो-तीन दिनों से बिहार में भी कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े हैं। बिहार में अभी भी प्रतिदिन कोरोना की बड़ी संख्या में टेस्टिंग हो रही है। अभी पूरे देश में कोरोना की जितनी जांच हो रही है उसकी एक तिहाई जांच बिहार में हो रही है। देश में 10 लाख की आबादी पर कोरोना की औसत जांच 6 लाख के करीब है जबकि बिहार में 10 लाख की आबादी पर कोरोना की औसत जांच 8 लाख से ज्यादा हो रही है।
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश देते हुये कहा कि पूरे राज्य में अधिक से अधिक टेस्टिंग करायें। जितनी अधिक जांच होगी, कोरोना संक्रमण के मामलों का पता चलेगा । कोरोना के मामले घटे या बढ़े कोरोना की निरंतर जांच जारी रखें। अस्पतालों में मरीजों के इलाज की पूरी व्यवस्था रखें। अस्पतालों में सभी प्रकार की दवायें एवं उपकरण उपलब्ध रखें । ऑक्सीजन की उपलब्धता भी सुनिश्चित करें। भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर लोग मास्क का प्रयोग करें। सभी को अलर्ट और एक्टिव रहना होगा। राज्य के सभी अस्पतालों में मॉक ड्रिल करायें एवं सभी प्रकार की तैयारियां रखें। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा कोरोना की
वैक्सीन उपलब्ध नहीं करायी जा रही है, इसको ध्यान में रखते हुये राज्य सरकार अपनी तरफ से कोरोना वैक्सीन खरीदकर लोगों का टीकाकरण जारी रखेगी।
बैठक में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव, वित्त, वाणिज्य कर एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव दीपक कुमार, मुख्य सचिव श्री आमिर सुबहानी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सह वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ० एस० सिद्धार्थ, मुख्यमंत्री के सचिव अनुपम कुमार, स्वास्थ्य विभाग के सचिव संजय कुमार सिंह एवं मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी गोपाल सिंह उपस्थित थे।
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मुजफ्फरपुर शहर से हटाए गए चार हजार बैनर-पोस्टर

मुजफ्फरपुर : शहर से अवैध बैनर-पोस्टरों को हटाने का अभियान मंगलवार से शुरू हो गया। पहले दिन नगर निगम की टीम ने कंपनीबाग, मोतीझील, हरिसभा चौक,इमलीचट्टी, बटलर रोड व अन्य इलाकों में चार हजार से अधिक बैनर-पोस्टर हटाए। पोल व अन्य जगहों पर लगाए गए बैनर-पोस्टर को हटाने के बाद ट्रैक्टर में लोडकर डंप कर दिया गया।
सड़कों पर लगाए गए बैनर-पोस्टर पर धूल जमा हो जाती है। इस कारण हवा चलने या बड़े वाहनों के गुजरने पर सड़क के साथ बैनर-पोस्टर पर जमा धूल भी उड़ने लगती है। हालात की गंभीरता को देखकर नगर आयुक्त के आदेश पर कार्रवाई की जा रही है। नगर आयुक्त नवीन कुमार के मुताबिक, अवैध तरीके से लगाए गए बैनर-पोस्टर को हटाया जा रहा है।
Source : Hindustan
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