BIHAR
कहानी तिरहुत रेलवे की, जिसके अवशेष अब ढूंढे न मिलेंगें

देश की पहली प्राइवेट ट्रेन ‘तेजस एक्सप्रेस’ की शुरुआत हो चुकी है.
लेकिन आज़ादी से पहले भारत में कई प्राइवेट रेल कंपनी चल रही थीं.
तिरहुत रेलवे उनमें से एक थी जिसे दरभंगा स्टेट चला रहा था.
1874 में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने तिरहुत रेलवे की शुरूआत की थी.
उस वक़्त उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था.
अकाल में राहत कार्य के लिए पहली ट्रेन 17 अप्रैल 1874 को वाजितपुर (समस्तीपुर) से दरभंगा तक चली.

तिरहुत रेल के सलून के बाहर का दृश्य
ये मालगाड़ी थी और इस पर अनाज लादा गया था. बाद में वाजितपुर से दरभंगा तक के लिए पैसेंजर ट्रेन चली.

बरौनी रेलवे स्टेशन पर पैलेस ऑन व्हील
तिरहुत रेलवे का सफ़र
तिरहुत रेलवे का सफ़र, भारत में रेलवे का सफ़र शुरू होने के दो दशक बाद यानी 1874 से शुरू हुआ. पूरे उत्तर बिहार में इसका जाल फैला हुआ था.
1875 में दलसिंहसराय से समस्तीपुर, 1877 में समस्तीपुर से मुज़फ़्फ़रपुर, 1883 में मुज़फ़्फ़रपुर से मोतिहारी, 1883 में ही मोतिहारी से बेतिया, 1890 में दरभंगा से सीतामढ़ी, 1900 में हाजीपुर से बछवाड़ा, 1905 में सकरी से जयनगर, 1907 में नरकटियागंज से बगहा, 1912 में समस्तीपुर से खगड़िया आदि रेलखंड बनाए गए.

दरभंगा रेलवे स्टेशन का एक दृश्य
बिहार के सोनपुर से अवध (उत्तरप्रदेश का इलाक़ा) के बहराइच तक रेल लाइन बिछाने के लिए 23 अक्तूबर 1882 को बंगाल और नार्थ वेस्टर्न रेलवे का गठन किया गया.
इस बीच 1886 में अवध के नवाब अकरम हुसैन और दरभंगा के राजा लक्ष्मीश्वर सिंह दोनों ही शाही परिषद के सदस्य चुने गए.
जिसके बाद 1886 में अवध और तिरहुत रेलवे में ये समझ बनी कि दोनों क्षेत्रों के बीच आना- जाना सुगम किया जाए.
बाद में 1896 सरकार और बंगाल और नार्थ वेस्टर्न रेलवे के बीच हुए एक करार के मुताबिक़ बंगाल और नार्थ वेस्टर्न रेलवे ने तिरहुत रेलवे के कामकाज को अपने हाथ में ले लिया.
राज परिवार से संबंध रखने वाली कुमुद सिंह कहती है, “दरअसल महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह किसानों की ज़मीन बेवजह रेलवे द्वारा अधिग्रहित किए जाने से नाराज़ थे इसलिए उन्होंने शाही परिषद, जो अब का राज्यसभा है, उसमें भूमि अधिग्रहण के लिए क़ानून बनाने का प्रस्ताव दिया. रेलवे के अंदर इस बात को लेकर नाराज़गी थी जो 1896 में नार्थ वेस्टर्न रेलवे द्वारा तिरहुत रेलवे के क़दम में दिखती है.”

तिरहुत रेलवे का फैला जाल
यात्रियों की सुविधा के लिए चलते थे स्टीमर
चूंकि रेल परिचालन जब शुरू हुआ तब गंगा नदी पर पुल नहीं बना था.
जिसके चलते यात्रियों को नदी के एक छोर से दूसरे छोर पर जाने के लिए स्टीमर सेवा उपलब्ध कराई गई थी.
तिरहुत स्टेट रेलवे के पास 1881-82 में चार स्टीमर थे जिसमें से दो पैडल स्टीमर ‘ईगल’ और ‘बाड़’ थे जबकि दो क्रू स्टीमर ‘फ्लोक्स’ और ‘सिल्फ’ थे.
ये स्टीमर बाढ़-सुल्तानपुर घाट के बीच और मोकामा-सिमरीया घाट के बीच चलते थे.

तिरहुत रेलवे का स्टीमर. गंगा पर कोई पुल ना होने की वजह से लोग स्टीमर पर बैठकर आते थे
दरभंगा स्टेट ने दरभंगा में तीन रेलवे स्टेशन बनाए.
पहला हराही (दरभंगा) आम लोगों के लिए, दूसरा लहेरियासराय अंग्रेज़ों के लिए और तीसरा नरगौना टर्मिनल जो महाराज के महल नरगौना पैलेस तक जाता था.
यानी नरगौना पैलेस एक ऐसा महल था जिसके परिसर में रेलवे स्टेशन था. जो बाद में दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्दालय के अधीन हो गया.

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी की थी तिरहुत रेल की यात्रा
तिरहुत रेलवे कंपनी का सैलून
तिरहुत रेलवे के प्रोपराइटर और दरभंगा महाराज के सैलून में देश के सभी बड़े नेताओं ने यात्रा की.
इसमें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, मदन मोहन मालवीय से लेकर तमाम बड़े नेता शामिल थे.
दिलचस्प है कि सिर्फ़ गांधी ही ऐसे नेता थे जिन्होंने सैलून का इस्तेमाल कभी नहीं किया. उन्होंने हमेशा तीसरे दर्जे में ही यात्रा की.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
तिरहुत रेलवे कंपनी के पास बड़ी लाइन और छोटी लाइन के लिए कुल दो सैलून या पैलेस ऑन व्हील थे.
इसमें चार डिब्बे थे. पहला डिब्बा बैठकखाना और बेडरूम था, दूसरा डिब्बा स्टॉफ़ के लिए, तीसरा डिब्बा पैंट्री और चौथा डिब्बा अतिथियों के लिए होता था.

त्रिपुरा के महाराजा
सैलून की उपलब्ध तस्वीरों में नक्काशीदार बेड दिखता है जिसमें चांदी जड़ी हुई है और दरभंगा राज का प्रतीक चिन्ह ‘मछली’ उकेरी गई है.
इन सैलून में महाराज के लिए बने बेडरूम का नाम नरगौना सूट था वहीं महारानी के लिए बने सूट का नाम रामबाग सूट था.
इस सैलून के वॉशरूम में यूरोपियन कमोड और बाथटब लगा हुआ है.

सलून के भीतर का दृश्य
बड़ी रेल लाइन का सैलून बरौनी (बेगूसराय) में रहता था जबकि छोटी लाइन का सैलून नरगौना टर्मिनल पर रहता था.
महाराज या जब उनके अतिथि को सफ़र करना होता था तो ये सैलून उन्ही ट्रेनों में जोड़ दिए जाते थे जिससे आम लोग यात्रा करते थे.

तिरहुत रेल के तीसरी श्रेणी का डिब्बा
गांधी के लिए तीसरे दर्जे में बना शौचालय
दरभंगा राज परिवार से संबंध रखने वाली कुमुद सिंह के मुताबिक़, “तिरहुत रेलवे पहली ऐसी कंपनी थी जिसने थर्ड क्लास या तीसरे दर्जे में शौचालय और पंखे की सुविधा दी थी. दरअसल गांधी जी जब तिरहुत रेलवे के पैसेंजर बनने वाले थे और ये तय था कि वो तीसरे दर्जे में यात्रा करेंगें तो दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह ने रेलवे को पत्र लिखा कि शौचालय की सुविधा होनी चाहिए. जिसके बाद तीसरे दर्जे में शौचालय बना जिसे गांधी जी के साथ साथ जनता ने भी इस्तेमाल किया. बाद में तीसरे दर्जे में पंखे भी लगे. यानी तिरहुत रेलवे ऐसा रेलवे था जो बेहद कम टिकट दरों पर जनता को बेहतर सुविधाएं देता था.”

1934 के भूकंप में क्षतिग्रस्त रेल पटरी
तिरहुत रेलवे के अवशेष भी नहीं रहे
1950 में रेलवे का राष्ट्रीयकरण हुआ. लेकिन तस्वीरों में जो समृध्दि से भरे रेलवे के डिब्बे हमें दिखते है, उसके अवशेष भी अब न के बराबर बचे हैं.
स्थानीय पत्रकार शशि मोहन कहते हैं, “ये सब कुछ हम लोगों के देखते-देखते नष्ट हो गया. जबकि रेल लाइन जो तिरहुत रेलवे ने बिछाई उस का इस्तेमाल आज भी होता है. आप देखें कि दरभंगा सहरसा लाइन जो तिरहुत रेलवे की थी वो 1934 के भूकंप में नष्ट हुई, दोबारा कहां बनी? नतीजा आवागमन की दिक्क़त लोगों को आज भी है.”

क्षतिग्रस्त पटरी
वहीं राज परिवार की कुमुद सिंह बताती है, “1973 में बरौनी में जो पैलेस ऑन व्हील खड़ा था उसमें लूटपाट करके आग लगा दी गई. वही 1982 में नरगौना में खड़े पैलेस ऑन व्हील को कबाड़ में बेच दिया गया. जिस कबाड़ी वाले को मिला, उसके परिवार ने कई किलो चांदी मिलने की बात भी बाद में कही. ऐसे में हमारे इतिहास, परंपरा को तो सरकारों ने नष्ट किया. और आज हालत ये है कि हम लोगों ने जो रेलवे का जनपक्षीय मॉडल अपनाया, उसको छीनकर सरकार जनविरोधी और महंगी रेल तेजस चला रही है. तेजस तो हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है.”

समस्तीपुर में खड़ा तिरहुत रेल का एक इंजन
इनपुट :
BIHAR
भीषण गर्मी से लोगों का हाल बेहाल, तोड़ा 11 साल का रिकॉर्ड, 29 जिले लू की चपेट में

बिहार के लोग इस वक़्त भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं। सूबे के 38 में से 29 जिलों को हीट वेव का सामना करना पड़ रहा है। जून के पहले हफ्ते में ही गर्मी ने पिछले 11 सैलून का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। IMD द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पटना, भागलपुर, पश्चिम चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सुपौल, अररिया, शेखपुरा, खगड़िया, भोजपुर, जमुई, कटिहार और वैशाली समेत अन्य जिले लू की चपेट में है।
इन जिलों में 13 से 21 किलोमीटर तक की गर्म हवायें चल रही है। इसके अलावा 10 ऐसे जिलें है जिसका तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से अधिक रिकॉर्ड किया गया है। वहीं बिहार के सभी जिलों में तापमान 41 डिग्री के आसपास देखने को मिल रहा है। आने वाले 3-4 दिनों में गर्मी से कोई राहत मिलने के आसार नहीं नजर रहे है। जबकि 10 और 11 जून को कुछ जिलों में हलकी बारिश होने की संभावना जताई गई है।
BIHAR
‘नीतीश की हालत अंधों में काना राजा वाली’ प्रशांत किशोर ने सीएम नीतीश पर साधा निशाना

सीएम नीतीश नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए प्रशांत किशोर ने कहा है कि नीतीश कुमार को एकमात्र पढ़े लिखे होने का भ्रम है। ‘नीतीश की हालत अंधों में काना राजा वाली’ है।
प्रशांत किशोर ने कहा है कि बिहार देश का सबसे फिसड्डी राज्य है लेकिन नीतीश बाकी प्रदेशों के मुख्यमंत्री से ऐसे मुलकात कर रहे हैं जैसे उन्होंने बिहार को अमेरिका बना दिया हो।
राजनीतिक रणनीतिकार पीके ने आगे कहा कि नीतीश को भ्रम हो गया है कि वो बहुत बड़े विद्वान है, सबकुछ जानते है। लेकिन उन्होंने अपने आसपास ऐसे लोगों को बैठाया है जिन्हें कुछ आता ही नहीं है। अभी बिहार में ऐसे ऐसे नेता है जिन्हें अपना नाम तक लिखने नहीं आता है। वहीं नीतीश कुमार को अपना नाम लिखने आता है तो उन्हें लगता है कि उन्हें सबकुछ आता है। लेकिन सच यहीं है कि वो अंधों में काना राजा हैं।
MUZAFFARPUR
बीपी इंद्रप्रस्थ इंटरनेशनल स्कूल में समर कैंप का समापन, विधायक अमर पासवान रहे मौजूद

बीपी इंद्रप्रस्थ इंटरनेशनल स्कूल में 29 तारीख से चल रहा समर कैंप आज समाप्त हो गया। समारोह के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोचहा विधायक अमर पासवान उपस्थित थे। विद्यालय के निदेशक सुमन कुमार समेत शिक्षक गण और तमाम समर कैंप के सभी बच्चों ने बहुत ही उत्साह पूर्वक सबसे अमर पासवान का अभिवादन किया। विद्यालय की सबसे छोटी सदस्या प्ले क्लास की निकी ने बुके भेंट कर उनका स्वागत किया।
इस मौके पर म्यूजिक टीम पंकज डे और गुरजीत के साथ विद्यालय के बच्चों ने ,”अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम” भजन के साथ माहौल को भावविभोर कर दिया। जिसके बाद विधायक अमर पासवान ने अपने हाथों समर कैंप के सभी बच्चों को सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। साथ ही समर कैंप को सफल करने के पीछे उन से जुड़े विद्यालय के क्रिएटिव टीम के सदस्य पंकज डे, गुरजीत ,धीरज कुमार गुप्ता ,निलेश कुमार ,अंकिता राज ,सोनी विद्यालय की पीआरओ भावना नंदा आदि को भी मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
इस दौरान विद्यालय के निदेशक सुमन कुमार ने मुख्य अतिथि अमर पासवान को मोमेंटो देकर सम्मानित किया । विद्यालय के मंच पर विधायक अमर पासवान ने विद्यालय के सभी व्यवस्थापक शिक्षक और विद्यार्थियों की सराहना की। उन्होंने कहा कोई शक नहीं यह विद्यालय मुजफ्फरपुर के सर्वोच्च विद्यालयों में से एक हैं। जहां बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है, मुझे बहुत खुशी है विद्यालय में मुझे आमंत्रित किया गया और अपने इस समारोह का अभिन्न अंग बनाया।
इसके बाद समर कैंप समापन समारोह के अंतिम चरण में गुब्बारों के गुच्छों के द्वारा निदेशक सुमन और विधायक अमर कुमार पासवान ने समर कैंप की यादों को हवा में फैलाने के लिए उड़ा दिया। विधायक अमर पासवान ने सभी बच्चों से उनके समर कैंप के अनुभवों के बारे में पूछा तो बच्चों ने बहुत उत्साह के साथ अपने सभी कार्यक्रमों का जिक्र किया।
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