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औरत और पानी सिर्फ ‘ज़रूरत’ की निशानी
घर के कामों से लेकर खेत में पानी देने तक दिन भर पानी में डूबी रहने वाली ये महिलाएं अपने अस्तित्व को न गिने जाने के बावजूद प्रकृति के साथ किए गए अत्याचार का सबसे ज्यादा फल भुगत रही है. सुबह के पाचं बज रहे हैं. सूरज को भी निकलने में आलस आ रहा है. […]
घर के कामों से लेकर खेत में पानी देने तक दिन भर पानी में डूबी रहने वाली ये महिलाएं अपने अस्तित्व को न गिने जाने के बावजूद प्रकृति के साथ किए गए अत्याचार का सबसे ज्यादा फल भुगत रही है.
सुबह के पाचं बज रहे हैं. सूरज को भी निकलने में आलस आ रहा है. इसलिए इछावर के दिवड़िया में अभी तारे ही टिमटिमा रहे हैं. अचानक बज उठे अलार्म ने योगिता की नींद खोल दी है. वैसे ये अलार्म किसी दूसरे को चौंका सकता है लेकिन योगिता के लिए ये रोज की आवाज़ है. बस फर्क इतना है कि हफ्ते में एक बार या कभी दस दिन में एक बार ये अलार्म एक घंटा पहले बज जाता है. इतने बड़े गांव में चंद ही कुएं और हैंडपंप है जहां से पानी निकलता है. वो भी हर छह घंटे में एक बार यानि एक दिन में चार परिवार ही पानी भर पाते हैं. इस तरह से एक परिवार का नंबर आते आते हफ्ता गुज़र जाता है. हफ्ते भर के पीने के पानी की जुगाड हो जाए इसके लिए थोड़ा जल्दी उठ कर घर के काम निपटाने होते हैं. योगिता को अभी तीन महीने पहले ही एक बेटा हुआ है.
बेटे की जिम्मेदारी भी उस पर ही है. योगिता के घर में उसका पति, सास-सुसर और देवर हैं. सभी सुबह 9 बजे तक काम पर निकल जाते हैं. पति और देवर पास के ही शहर में राजमिस्त्री का काम करते हैं. सास खेतों में दिहाडी करने जाती है. ससुर गांव के सारे जानवरों को चराने का काम करता है और योगिता भी घर के काम निपटा कर खाना तैयार करके गांव के बाहर मवेशियों के बाड़े में (जहां गांव के सभी जानवर बांधे जाते हैं) जाकर अपनी गाय का दूध निकालती है, गोबर हटाती है और कंडे (उपले) बनाने का काम करती है. इस दौरान उसका दुधमुंहा बच्चा उसके साथ ही रहता है. योगिता ने अपनी छोटी बहन को गांव से बुलवा लिया है क्योंकि हैंडपंप से या कुएं से पानी भरने के दौरान कोई तो चाहिए जो उसके बेटे को संभाल सके.
कुल मिलाकर योगिता की दिनचर्या पर अगर नज़र डालें तो अलसुबह उठकर झाडूं पोंछे से लेकर खाना बने तक वो तमाम तरह के काम है और फिर गांव के बाहर बाड़े मे जाकर काम भी करना है. सबको खाना खिलाकर आखिर में खाना खाना है और सबसे पहले जाकर कर सबसे आखिर में सोना है.
ख़ास बात यह है कि योगिता घर के काम के साथ पानी लाने की जिम्मेदारी भी संभाल रही है क्योंकि पानी लाना औरतों का ही काम है. हां जब दूर खेतों से पानी भर कर लाना होता है तब उसके पति या देवर को जिम्मेदारी मिलती है. दुधमुंहे बच्चे के साथ दिनभर लगी रहने वाली योगिता फिर भी यही मानती है कि उसके पति बेचारे दिन भर खटते रहते है. इसलिए उसे अपने पति की बातें, गालियां सुनने में भी कुछ गुरेज नहीं लगता है. उसका कहना है कि दिन भर बाहर जाकर कमाने वाले को जमाने भर के सिरदर्द होते हैं ऐसे में वो कहीं न कहीं तो भड़ास निकालेगा ही. भीषण पानी की कमी से जूझते दिवड़िया में योगिता को लगता है कि अगर पानी की दिक्कत दूर हो जाए तो उसकी तकलीफों का हल निकल जाएगा.
योगिता की सास भी सुबह से खाना लेकर खेतों में निकल जाती है . वो दिन भर खेतों में कटाई करती है लेकिन उसे उतनी मज़दूरी नहीं मिलती है जितनी दूसरे पुरुषों को खेतों में काम करने पर मिलती है. हालांकि उसे इस बात को कोई ग़म नहीं है कि उसे पुरुषों से कम दिहाडी क्यों मिलती है. उसे और उसके साथ काम करती हर महिला को लगता है कि शायद खेतों की कटाई में वो मेहनत नही है जितनी दूसरे कामों में होती है. वो भी घरो में होने वाले रोजमर्रा के कामों को काम मान ही नहीं पाती है. बस वो मशीनों से कटाई को लेकर ज़रूर दुखी हो जाती है क्योंकि इससे उनका रोजगार छिन रहा है . उन्हें भी लगता है कि गांव में कोई परेशानी नहीं है, सब कुछ ठीक है. वो खुश भी हैं, बस किसी बात की कमी है तो वो है पानी.
गांव की सीट आरक्षित हुई तो वो महिला दलित कोटे में चली गई तो सरपंच दलित महिला ही बनी. लेकिन आप गांव घूमकर आ जाइए आपको सरंपंच मिलेगी ही नहीं. ऐसा नहीं है कि सरपंच की तरफ से कोई जवाब नहीं मिलेगा, उन्होंने अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर रखा है जो उनकी ओर से सारी बातों के जवाब देता है. ऐसा तो खैर शहरों में भी होता है जहां पर महिला सिर्फ चुनाव की उम्मीदवार होती है, असलियत में उम्मीदें किसी और की पूरी होती है.
वहीं बलिया जिले में गंगा बेल्ट के किनारे बसे गांवों में भूमिगत पानी से निकलता आर्सेनिक गांवों को लील रहा है. इन गांवो में अगर आप जाकर किसी महिला का नाम पूछेंगे तो कोई आपको नहीं बता पाएगा. उल्टा वो आपसे ये सवाल ज़रूर पूछ सकता है कि किसकी पत्नी, बहन या मां है. गांव में रहने वाले दस साल के बच्चे को भी लोग नाम से जानते हैं लेकिन गांव में रहने वाली बूढी महिला भी किसी की मां, पत्नी या बहन के नाम से जानी जाती है. जिन महिलाओं का कोई वजूद ही नहीं है, जिनका कोई नाम तक नहीं जानता है उसी गांव की महिलाएं ही सबसे ज्यादा आर्सेनिक से ग्रसित है.
घर के कामों से लेकर खेत में पानी देने तक दिन भर पानी में डूबी रहने वाली ये महिलाएं अपने अस्तित्व को न गिने जाने के बावजूद प्रकृति के साथ किए गए अत्याचार का सबसे ज्यादा फल भुगत रही है. उस पर अगर शादी की बात आती है तो हाथों और शरीर पर काले दाने लिए हुए इन महिलाओं को सुंदरता के मापक पैमाने के तहत अस्वीकार भी कर दिया जाता है. इन महिलाओं को तो इस बात का इल्म भी नहीं है कि वो जिस काम को करते हुए इतनी बड़ी कीमत चुका रही है, उस काम को काम तक नहीं समझा जाता है. उन्हें भी लगता है कि घर के काम औरत नहीं करेगी तो फिर कौन करेगा. रही बात शादी न हो पाने की तो वो इसे किस्मत का दोष या पूर्व जन्मों का करम मान कर मन बहला रही है.
बलिया से करीब 350 किलोमीटर दूर सोनभद्र जिले के पास बसे गांवो में कोयले की खदानों से उड़ती धूल ने फ्लोराइड की समस्या को पैदा कर दिया है. यहां गांव के गांव टेढ़े पैर लिये हुए जिंदगी जीने को मजबूर हैं. वैसे ये बात किसी भी बाहर से आने वाले को हैरान कर सकती है कि यहां भी झुकी कमर के साथ चलती हुई अधिकांश महिलाएं ही हैं.
महिलाएं ही हैं जिन्हें कैल्शियम से जुड़ी समस्याएं ज्यादा होती है. दिनभर काम में जुटी औरत जिसके हाथ के खाने की तारीफ उनके पति या बेटे दुनियाभर में करते हैं, वो शायद घर जाते ही ये भूल जाते हैं कि जिस औरत ने उनके लिए पोषक तत्वों से भरपूर लज़ीज खाना तैयार किया है, उसने खुद ने अपनी रोटी अचार या नमक मिर्च के साथ खाई है. सब्जी –दाल जैसी चीजें उसे नसीब हुई है या नहीं हुई. वो औरत जो सुबह उठ कर घर के लिए पानी की जुगाड में लग गई है जिससे किसी का गला न सूखे, किसी के कपड़े मैले न दिखे, किसी को गंदे बर्तनों मे खाना नहीं खाना पड़े उसे खुद वो पानी लाने के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ रही है.
यह हमारे गांव की हक़ीकत है, वहीं गांव जहां महात्मा गांधी के मुताबिक असली भारत बसता है. उधऱ सोशल मीडिया पर महिला दिवस काफी ‘धूम-धाम’ से मनाया जा रहा है. कई चैनल ‘महिलाओं का हफ्ता’ घोषित करके नायिका प्रधान फिल्में दिखा रहे हैं. रेस्त्रां ने उनके लिए खास मेन्यू तैयार किया है. दरअसल महिला उस पानी की तरह है जो जिस बर्तन में जाता है वैसे रूप ले लेता है और हम उसे अपनी ज़रूरत के हिसाब से अलग अलग बर्तनों में डालते रहे हैं. तो अगर वाकई में महिला दिवस जैसी किसी बात पर भरोसा करते हैं तो कम से कम घर लौट कर आने वाली या आपके साथ काम करने वाली आपकी सहयोगी को एक गिलास पानी के लिए ही दिल से पूछ लीजिए. बाकी ज़रूरत तो पूरी हो ही रही है.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और WaterAid India ‘WASH Matters 2018’ के फैलो हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)
Source : Zee News
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जमीन व फ्लैट के निबंधन में एक जून से गवाह की जरूरत नहीं

बिहार में जमीन, फ्लैट, मकान समेत अन्य के निबंधन का प्रावधान 1 जून से बदल जाएगा। अब निबंधन में गवाह की अनिवार्यता समाप्त होने जा रही है। किसी तरह के निबंधन में दो या चार गवाहों को लाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, न क्रेता को और न ही बिक्रेता को।
इस नए प्रावधान के तहत निबंधन कार्यालय में सिर्फ जमीन या फ्लैट खरीदने और बेचने वाले ही आएंगे। इस नए नियम को बहाल करने को लेकर उत्पाद, मद्य निषेध एवं निबंधन विभाग ने आदेश जारी कर दिया है। साथ ही संबंधित कंपनी को सॉफ्टवेयर में अहम बदलाव करने को भी कहा है। इसके लिए 1 जून तक की डेटलाइन दी गई है। इस बदलाव से अब सिर्फ जमीन-फ्लैट के क्रेता या खरीदने वाले को अपना-अपना आधार नंबर देना होगा और इसे बायोमीट्रिक प्रणाली के जरिए वैध करना होगा।
राज्य में 137 निबंधन कार्यालय हैं। इन सभी में रोजाना औसतन 5 हजार निबंधन होते हैं। नई प्रणाली से भीड़ कम होगी और राजस्व बढ़ेगा।
इसलिए समझा जा रहा है यह जरूरी
निबंधन कार्यालयों में जमीन-फ्लैट की रजिस्ट्री के दौरान लोगों की नाहक होने वाली भीड़ को कम करना मकसद है। एक रजिस्ट्री में चार या इससे अधिक गवाह होने से काफी संख्या में लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। इससे कार्यालय का कामकाज भी बाधित होता है और प्रक्रिया में समय भी अधिक लगता है। कई मामलों में गवाह जुटाने में भी कई बिचौलियों किस्म के लोग काफी सक्रिय रहते हैं। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए यह नई प्रणाली बहाल की जा रही है।
Source : Hindustan
BIHAR
नीतीश निर्देश- मास्क लगाएं, अस्पताल अलर्ट रहें; केंद्र वैक्सीन नहीं दे रहा तो खरीदें…

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज 1 अणे मार्ग स्थित ‘संकल्प’ में कोरोना के बढ़ते मामले को लेकर उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। बैठक में स्वास्थ्य विभाग के सचिव संजय कुमार सिंह ने राज्य में कोरोना संक्रमण की अद्यतन स्थिति तथा विभाग द्वारा की गयी तैयारियों के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले दो-तीन दिनों से बिहार में भी कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े हैं। बिहार में अभी भी प्रतिदिन कोरोना की बड़ी संख्या में टेस्टिंग हो रही है। अभी पूरे देश में कोरोना की जितनी जांच हो रही है उसकी एक तिहाई जांच बिहार में हो रही है। देश में 10 लाख की आबादी पर कोरोना की औसत जांच 6 लाख के करीब है जबकि बिहार में 10 लाख की आबादी पर कोरोना की औसत जांच 8 लाख से ज्यादा हो रही है।
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश देते हुये कहा कि पूरे राज्य में अधिक से अधिक टेस्टिंग करायें। जितनी अधिक जांच होगी, कोरोना संक्रमण के मामलों का पता चलेगा । कोरोना के मामले घटे या बढ़े कोरोना की निरंतर जांच जारी रखें। अस्पतालों में मरीजों के इलाज की पूरी व्यवस्था रखें। अस्पतालों में सभी प्रकार की दवायें एवं उपकरण उपलब्ध रखें । ऑक्सीजन की उपलब्धता भी सुनिश्चित करें। भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर लोग मास्क का प्रयोग करें। सभी को अलर्ट और एक्टिव रहना होगा। राज्य के सभी अस्पतालों में मॉक ड्रिल करायें एवं सभी प्रकार की तैयारियां रखें। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा कोरोना की
वैक्सीन उपलब्ध नहीं करायी जा रही है, इसको ध्यान में रखते हुये राज्य सरकार अपनी तरफ से कोरोना वैक्सीन खरीदकर लोगों का टीकाकरण जारी रखेगी।
बैठक में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव, वित्त, वाणिज्य कर एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव दीपक कुमार, मुख्य सचिव श्री आमिर सुबहानी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सह वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ० एस० सिद्धार्थ, मुख्यमंत्री के सचिव अनुपम कुमार, स्वास्थ्य विभाग के सचिव संजय कुमार सिंह एवं मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी गोपाल सिंह उपस्थित थे।
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मुजफ्फरपुर शहर से हटाए गए चार हजार बैनर-पोस्टर

मुजफ्फरपुर : शहर से अवैध बैनर-पोस्टरों को हटाने का अभियान मंगलवार से शुरू हो गया। पहले दिन नगर निगम की टीम ने कंपनीबाग, मोतीझील, हरिसभा चौक,इमलीचट्टी, बटलर रोड व अन्य इलाकों में चार हजार से अधिक बैनर-पोस्टर हटाए। पोल व अन्य जगहों पर लगाए गए बैनर-पोस्टर को हटाने के बाद ट्रैक्टर में लोडकर डंप कर दिया गया।
सड़कों पर लगाए गए बैनर-पोस्टर पर धूल जमा हो जाती है। इस कारण हवा चलने या बड़े वाहनों के गुजरने पर सड़क के साथ बैनर-पोस्टर पर जमा धूल भी उड़ने लगती है। हालात की गंभीरता को देखकर नगर आयुक्त के आदेश पर कार्रवाई की जा रही है। नगर आयुक्त नवीन कुमार के मुताबिक, अवैध तरीके से लगाए गए बैनर-पोस्टर को हटाया जा रहा है।
Source : Hindustan
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